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ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति ज्ञाताधर्मकथांग में कोष रखने के स्थान यानी खजाने के लिए 'श्रीगृह' शब्द आया है। 40
आचार्य कौटिल्य ने आय के साधनों को सात भागों में बांटा है- दुर्ग, राष्ट्र, खनि, सेतु, वन, व्रज और वणिक-पथ (व्यापार सम्बन्धी कार्य)141 इनमें कुछ विशेष उल्लेखनीय आय के साधन ये हैं- शुल्क (चुंगी), दण्ड (जुर्माना), तेलघी आदि के विक्रेताओं से कर, छूत, वास्तुक (शिल्पी), बढ़ई, लुहार, सुनार आदि से कर लेना, खेती-धान्य का छठा अंश, उपहार कर, व्यापार कर, तट कर, खनिजों पर कर, फल-फूल पर कर, स्थलमार्ग और जलमार्ग पर यातायात कर आदि। 142 ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार उस समय आय के स्रोत के रूप में चुंगी, कर, बेगार, दंड (अपराध के अनुसार लिया जाने वाला द्रव्य) एवं ऋण आदि का प्रचलन था।43 कर आदि माफ करने का उल्लेख भी एकाधिक स्थानों पर मिलता है। राजा श्रेणिक ने पुत्र जन्मोत्सव के अवसर पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा- दस दिनों तक शुल्क (चुंगी) लेना बंद किया जाए। गायों वगैरह का प्रतिवर्ष लगने वाला कर माफ किया जाए, कुटुम्बियों-किसानों आदि के घर में बेगार आदि लेने के लिए राजपुरुषों का प्रवेश निषिद्ध किया जाए, दंड न लिया जाए, किसी को ऋणी न रहने दिया जाए, किसी देनदार को पकड़ा न जाए- ऐसी घोषणा करवा दो।44 वणिक व्यापार करके आते तब राजाओं को बहुत-सी भेंट देते थे, जिससे उनका शुल्क माफ कर दिया जाता था।45
ज्ञाताधर्मकथांग के शोधपरक अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि तत्कालीन समय राज्य में आय के स्रोत निश्चित और सुव्यवस्थित नहीं थे। न तो कोई व्यवस्थित कर-प्रणाली थी और न ही कर-संग्रह के लिए कर्मचारी नियुक्त करने का उल्लेख मिलता है।
आय के स्रोत के साथ-साथ व्यय के माध्यम के रूप में सार्वजनिक निर्माण कार्यों का उल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है।146 सैन्य-संगठन
___ अहिंसा प्रधान जैनधर्म ने सैन्यवृत्ति को राज्य का एक आवश्यक अंग माना है। देश की आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा के लिए सेना रखना अनिवार्य था। सैन्यवृत्ति की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए महापुराण में कहा गया है कि जिस व्यक्ति की युद्ध में मृत्यु होती है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।147
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