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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन धारिणी देवी की सेवा में अंग परिचारिकाएँ (शरीर की सेवा शुश्रूषा करने वाली) तथा आभ्यंतर दासियाँ नियोजित थी। द्रौपदी की सेवा में लेखिकादासी-लिखने वाली137 तथा प्रेषणकारिणी दासी132 (इधर-उधर आने-जाने का काम करने वाली) थी। अन्तःपुर की सुरक्षा व वहाँ के कार्य की चिन्ता रखने वाले विशेष दास- कंचुकी, महत्तरक आदि हुआ करते थे।133 प्रसन्न होने पर राजा द्वारा दास-दासियों का बहुमूल्य उपहार देने और हमेशा के लिए दासत्व से मुक्त करने का उल्लेख भी मिलता है। श्रेणिक राजा ने पुत्र जन्म का शुभ संवाद देने वाली दासियों को विपुल द्रव्य देकर सम्मानित किया और उन्हें दासीपन से मुक्त कर दिया।134 अन्य कर्मचारी उपर्युक्त राजकर्मचारियों के अलावा ज्ञाताधर्मकथांग में कुछेक कर्मचारियों का नामोल्लेख और मिलता है जिनमें से प्रमुख हैं- ज्योतिषी, द्वारपाल, चेट (पैरों के पास रहने वाले सेवक), पीठ मर्द (सभा के समीप रहने वाले सेवक मित्र)135, स्वप्न पाठक136 आदि। ये सभी कर्मचारी राजा की सेवा में तत्पर रहते थे। __ सभी कर्मचारियों को भोजन व वेतन देने का उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन भोजनशाला में भोजन बनाने वाले कर्मचारियों को भोजन व वेतन देने का उल्लेख मिलता है।137 कर्मचारियों की स्थिति प्राचीनकाल में सेवकों यानी कर्मचारियों को समाज में कितना सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था, यह बात ज्ञाताधर्मकथांग में कई स्थानों पर दृष्टिगोचर होती है। उन्हें 'कौटुम्बिक पुरुष' अर्थात् परिवार का सदस्य समझा जाता था और महामहिम मगध सम्राट श्रेणिक जैसे पुरुष भी उन्हें 'देवानुप्रिय' कहकर संबोधित करते थे।138 आय-व्यय के स्रोत (राजकीय कोष) किसी भी राष्ट्र की राजनीतिक सुदृढ़ता के लिए आर्थिक-व्यवस्था का सुदृढ़ होना परमावश्यक है। आर्चाय चाणक्य ने राज्य और अर्थ के सम्बन्ध के विषय में स्पष्ट कहा है कि धर्म का आधार अर्थ है और अर्थ का आधार राज्य है।139 अतः राजा को अपने यहाँ एक कोष रखना चाहिए। 198
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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