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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
ज्ञाताधर्मकथांग अध्यात्म केन्द्रित ग्रंथ है फिर भी इसमें सैन्य संगठन को एक राज्य के अनिवार्य अंग के रूप में प्रस्तुत किया गया है
सेना और उसके विभाग
वास्तव में राजा और राज्य का अस्तित्व ही सेना पर निर्भर है। शुक्रनीति में अस्त्रों तथा शस्त्रों से सुसज्जित मनुष्यों के समुदाय को सेना संज्ञा से संबोधित किया गया है। 148
ज्ञाताधर्मकथांग में चतुरंगिणी सेना हाथी, घोड़ा, रथ तथा पैदल का उल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है। 149
हस्तिसेना
हमारे देश में प्राचीनकाल से ही हस्तिसेना का प्राधान्य रहा है । ज्ञाताधर्मकथांग में गंधहस्ती 150, सेचनक 151, विजय नामक गंधहस्ती 152 आदि विभिन्न प्रकार के हाथियों का नामोल्लेख मिलता है।
अश्वसेना
ज्ञाताधर्मकथांग में एकाधिक स्थानों पर अश्वसेना का उल्लेख मिलता है।153 अश्व युद्धस्थल में विषम परिस्थितियों का सामना करने में निपुण होते हैं । भारत में घोड़े प्रायः अन्य देशों से मंगवाए जाते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में कालिक द्वीप से आकीर्ण प्रजाति के अश्व मंगवाने का उल्लेख मिलता है। 154
रथसेना
ज्ञाताधर्मकथांग में रथसेना का भी उल्लेख मिलता है। 155
पैदलसेना
सैन्य संगठन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पैदल सेना होती थी । विजयश्री की उपलब्धि में इसकी भूमिका निर्विकल्प थी । ज्ञाताधर्मकथांग में चतुरंगिणी सेना एक अंग के रूप में इसका नामोल्लेख मिलता है 1 156
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सैन्याधिकारी
ज्ञाताधर्मकथांग में चतुरंगिणी सेना का उल्लेख हुआ है लेकिन कहीं भी सैन्य पदाधिकारियों की कोई सूची नहीं मिलती। ज्ञाताधर्मकथांग में सैन्य पदाधिकारी के रूप में केवल सेनापति 157 का ही उल्लेख मिलता है, शेष सभी योद्धा या वीर कहे जाते थे। हरिवंशपुराण में कहा गया है कि इस पद पर प्रायः राजकुल के रणकुशल लोग ही नियुक्त किए जाते थे। 158 युद्ध की विषम परिस्थिति में राजा
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