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________________ जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं, वे देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की वाचना के हैं और उसके बाद उनमें परिवर्तन व परिवर्द्धन नहीं हुआ, ऐसा माना जाता है। आगम की भाषा आगम की मूल भाषा अर्द्धमागधी है। जिसे सामान्यतः प्राकृत भी कहा जाता है। समवायांग के अनुसार सभी तीर्थंकर अर्द्धमागधी भाषा में उपदेश देते हैं। यह देववाणी है। देव इसी भाषा में बोलते हैं । इस भाषा में बोलने वाले को भाषार्य भी कहा गया है। जिनदासगणि अर्द्धमागधी का अर्थ दो प्रकार से करते हैं- प्रथम यह भाषा मगध के एक भाग में बोली जाने के कारण अर्धमागधी कही जाती है, दूसरे में यह भाषा अठारह देशी भाषाओं का सम्मिश्रण है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मागधी और देशज शब्दों का इस भाषा में मिश्रण होने से यह अर्धमागधी कहलाती है आगम की विषयसामग्री जैनागमों में कुछ तो ऐसे हैं, जो जैन आचार से सम्बन्ध रखते हैं, जैसेआचारांग, दशवैकालिक आदि, कुछ उपदेशात्मक, जैसे- उत्तराध्ययन, प्रकीर्णक आदि, कुछ तत्कालीन भूगोल और खगोल आदि मान्यताओं का वर्णन करते हैं, जैसे-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि। छेद सूत्रों का प्रधान विषय जैन साधुओं के आचार सम्बन्धी औत्सर्गिक और आपवादिक नियमों का वर्णन तथा प्रायश्चितों का विधान है। कुछ ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें जिनमार्ग के अनुयायियों का जीवन दिया गया है, जैसे-उपासकदशांग, अनुत्तरोपपातिक आदि। भगवतीसूत्र में भगवान महावीर के साथ हुए संवादों का संग्रह है। कल्पसूत्र में महावीर का विस्तृत जीवन, ज्ञाताधर्मकथांग में निर्ग्रन्थ प्रवचन की भावपूर्ण कथाओं, उपमाओं और दृष्टान्तों का संग्रह है। जैन आगम साहित्य में दार्शनिक, साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सभी तथ्य मौजूद हैं। आगम साहित्य का सर्वाधिक महत्व इसलिए है कि वह ज्ञान-विज्ञान, न्याय-नीति, आचार-विचार, धर्मदर्शन और अध्यात्म अनुभव का अक्षय कोष है। यह महावीर-वाणी की अनमोल धरोहर व निधि है। समग्र रूप से आगम-साहित्य में जैन श्रमणों के आचार-विचार, व्रतसंयम, तप-त्याग, गमनागमन, रोग-चिकित्सा, विद्या मंत्र, उपसर्ग-दुर्भिक्ष तथा उपवास-प्रायश्चित आदि का वर्णन करने वाली अनेक परम्पराओं, जनश्रुतियों, लोककथाओं और धर्मोपदेश की पद्धतियों का वर्णन है। भगवान महावीर का 19
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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