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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन पाटलिपुत्र में जैन श्रमणों का सम्मेलन बुलाया। एकत्र हुए श्रमणों ने ग्यारह अंगों को व्यवस्थित किया किन्तु उनमें से किसी को भी दृष्टिवाद याद नहीं था। माथुरी वाचना
द्वादशवर्षीय दुष्काल के कारण प्रज्ञा एवं धारणा शक्ति के अभाव में सूत्र नष्ट हो गया। बारह वर्ष के दुष्काल के बाद आर्यस्कंदिल की अध्यक्षता में स्थविर मधुमित्राचार्य और आर्य गन्धहस्ती प्रमुख 125 निर्ग्रन्थों की उपस्थिति में साधुसंघ मथुरा में एकत्र हुआ और जिसको जो याद था, उसके आधार पर कालिक श्रुत को व्यवस्थित कर लिया गया। मथुरा निवासी ओसवंशीय श्रावक पोलाक ने गन्धहस्ती के विवरण सहित उन ग्रंथों (प्रवचन) को ताड़पत्र पर लिखवाकर मुनियों के स्वाध्याय के लिए समर्पित किया। यह वाचना मथुरा में होने के कारण माथुरी वाचना कहलाई। वल्लभी वाचना
मथुरा सम्मेलन के समय अर्थात् वीर निर्वाण 827-840 के आसपास वल्लभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में भी एक आगम संकलन का प्रयास हुआ, जो 'नागार्जुनीय वाचना' के नाम से विख्यात है। इसका उल्लेख भद्रेश्वर रचित कहावली ग्रंथ में मिलता है। चूर्णियों में भी नागार्जुन नाम से पाठान्तर मिलते हैं। पण्णवणा जैसे अंगबाह्य सूत्रों में भी इस प्रकार के पाठान्तरों का निर्देश है। आचार्य देववाचक ने भी भावपूर्ण शब्दों में नागार्जुन की स्तुति की है।” वाचक नागार्जुन और एकत्र जैन मुनियों को जो-जो आगम और उनके अनुयोगों के उपरान्त प्रकरण ग्रंथ याद थे, वे लिख लिए गए और विस्मृत स्थलों को पूर्वापर संबंध के अनुसार ठीक करके वाचना दी गई। देवर्धिगणि वाचना
वीर निर्वाण के 980 वर्षों के बाद लोगों की स्मृति पहले से दुर्बल हो गई, अत: उस विशाल ज्ञान भण्डार को स्मृति में रखना कठिन हो गया। अत: वीर निर्वाण 980 या 993 (सन् 454 या 466) में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में श्रमण संघ एकत्र हुआ और स्मृति में रहे शेष सभी आगमों को संकलित किया और साथ ही पुस्तकारूढ़ भी कर दिया गया। यह पुस्तकरूप में लिखने का पहला प्रयास था। योगशास्त्र में उल्लेख मिलता है कि आचार्य स्कन्दिल और नागार्जुन के समय ही आगम पुस्तकारूढ़ कर दिए गए थे।
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