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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन बुद्धिमान, दृढ़प्रतिज्ञ व शूरवीर होना चाहिए।110 श्रेष्ठी (नगर सेठ) राजा से प्राप्त श्री देवता के चिह्न से अंकित पट्टेवाला। ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न स्थानों पर 'श्रेष्ठी111 का उल्लेख है। उपर्युक्त संदर्भो में श्रेष्ठी की परिभाषा तो नहीं मिलती लेकिन ऐसा संकेत मिलता है कि यह प्रायः अमात्य, सेनापति, कौटुम्बिक, मांडविक (चारों ओर नगर आदि से शून्य, मडम्ब और उसका अधिराज 'माडाम्बिक'। मडम्ब की व्यवस्था करने वाला, कलक्टर, चूंगीवाला, नाकादार, सामरवाला, कर एकत्र कर्ता अधिकारी।- सचित्र अर्द्ध मागधी कोष, भाग-4), इभ्य आदि के साथ ही रहता था। ___ 'श्रेष्ठी' को परिभाषित करते हुए अनुयोगद्वार चूर्णि में कहा गया है कि अभिषेक करती हुई लक्ष्मी देवी का चित्र जिसमें अंकित हो, वैसा वेष्टन बांधने वाला और सब वणिकों का अधिपति श्रेष्ठी कहलाता है ।112 लेखवाह ज्ञाताधर्मकथांग में लेखवाह/पत्रवाह शब्द तो प्रयुक्त नहीं हुआ है, लेकिन कृष्ण वासुदेव दारुक सारथी के हाथों एक पत्र पद्मनाभ राजा को भेजता है, जिसमें द्रौपदी देवी को लौटाने की बात लिखी रहती है। 13 इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय पत्रवाहक होते थे, जिनकी नियुक्ति पत्र लाने-ले जाने के लिए की जाती थी। नगररक्षक ज्ञाताधर्मकथांग में 'नगररक्षक' का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। इनका मुख्य कार्य चोर आदि को पकड़ना और नगर की सुरक्षा करना था। ये भ्रष्टाचार में आंकठ डूबे थे।14 तलवर ज्ञाताधर्मकथांग में राज कर्मचारी के रूप में तलवर' शब्द प्रयुक्त हुआ है। तलवर उसे कहा है जिन्हें राजा के द्वारा स्वर्ण के पट्टे दिए जाते थे।15 महाभारत में 'तलवर' शब्द का प्रयोग कोतवाल अर्थात् नगररक्षक के लिए हुआ है।16 ___ एक राज्य जिस व्यक्ति के माध्यम से दूसरे राज्य को राजनीतिक संदेश भेजता है, उस व्यक्ति को दूत कहते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में एकाधिक स्थानों पर 196
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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