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ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति ले जाती है।
ज्ञाताधर्मकथांग में मंत्री, महामंत्री” और अमात्य शब्द समानार्थी रूप में प्रयुक्त हुए हैं। कौटिल्य के विचारानुसार जिस प्रकार एक चक्र से रथ नहीं चल सकता, उसी प्रकार बिना मंत्रियों की सहायता के राजा स्वतः राज्य का संचालन नहीं कर सकता। राजा श्रेणिक अपने पुत्र अभय से विभिन्न विषयों पर मंत्रणा करता था। राजा श्रेणिक के लिए अभयकुमार मेढ़ीभूत, प्रमाणभूत, आधारभूत, आलम्बनभूत, चक्षुभूत के रूप में था। श्रेणिक गोपनीय कार्यों व निर्णयों में उसकी राय लेता था।100 इसी तरह अमात्य सुबुद्धि101 और अमात्य तैतलीपुत्र102 ने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से राजा व प्रजा के मध्य अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। अमात्य अभयकुमार चार बुद्धियों- औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी से युक्त था। अमात्य तैतलिपुत्र साम, दाम, भेद और दंड- इन चारों नीतियों का प्रयोग करने में निष्णात था।104 मंत्री सुबुद्धि श्रमणोपासक और जीवअजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता था।105
शैलक राजा के पंथक आदि 500 मंत्री/अमात्य थे।106 उस समय के मंत्रियों में राजा के प्रति कितनी समर्पणा थी, वह इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि जब शैलकराजा दीक्षा लेने को तत्पर होता है तो उसके पंथक आदि 500 मंत्री भी दीक्षा लेने को तत्पर हो जाते है।07
इसके आधार पर कहा जा सकता है कि मंत्री राजा के प्रति हृदय से समर्पित थे, आज की तरह वे राजा को पदच्युत करने और स्वयं गद्दी हड़पने का प्रयास नहीं करते थे, परिणामस्वरूप राजनीतिक स्थिरता का माहौल था। सेनापति
चतुरंगिणी सेना के अधिपति को सेनापति कहते हैं।108 सेनापति का पद महत्वपूर्ण होता था। राजा के विश्वासपात्र व्यक्ति अथवा राजकुमारों में से सेनापति का चयन किया जाता था। देश की रक्षा और युद्ध में विजय का उत्तरदायित्व उस पर होता था।
ज्ञाताधर्मकथांग में सेनापतिशब्द का उल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है, लेकिन इसका समग्र परिचय नहीं मिलता है। अन्य प्राचीन ग्रंथों में सेनापति के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि सेनापति को कुलीन, शीलवान, धैर्यवान, अनेक भाषाओं का ज्ञाता, गजाश्व की सवारी में दक्ष, शस्त्रास्त्र का ज्ञाता, शकुनविद, प्रारम्भिक चिकित्सा का ज्ञाता, वाहन विशेषज्ञ, दानी, मृदुभाषी,
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