________________
ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन असिवृत्ति
ज्ञाताधर्मकथांग की कथाओं के अनुसार समाज में कुछ लोग शस्त्रास्त्र के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते थे। इसके अन्तर्गत सैनिक, पुलिस187, रक्षक188 आदि का उल्लेख मिलता है। युद्ध के समय सैनिकों की एवं आन्तरिक विपत्तियों के समय पुलिस और रक्षकों की तत्परता ज्ञाताधर्मकथांग में देखी जाती है।89 72 कलाओं में कई प्रकार की युद्ध कलाओं का वर्णन मिलता है। ध्यान से देखने पर इनमें युद्ध सम्बन्धी बारीकियाँ भी परिलक्षित होती हैं। मसिवृत्ति
__ इस वर्ग के अंतर्गत लेखक आते हैं। ये लोग राजाओं के यहाँ सरकारी लिखा-पढ़ी का कार्य सम्पन्न करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में द्रौपदी जब स्वयंवर मण्डप में जाने लगी तब राजाओं के परिचय लिखने वाली लेखिका भी उसके साथ गईं।19० कृष्ण वासुदेव ने पद्मनाभ राजा को लेखक के साथ पत्र भेजा। यद्यपि ज्ञाताधर्मकथांग में इनके विषय में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है किन्तु इतना सुनिश्चित है कि राज्य में इनका महत्वपूर्ण स्थान था। पुरुषों की 72 कलाओं में लेखन' को सर्वप्रथम माना है। कृषिवृत्ति
ज्ञाताधर्मकथांग में एक स्थान पर चावलों की खेती का उल्लेख मिलता है12, लेकिन खेती से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कृषक खेत में बीज वपन करने के उपरान्त सिंचाई कर उसकी निराई-गुड़ाई करते थे। इसके बाद पुनः सिंचाई की जाती थी। फसल के पक जाने पर उसकी कटाई कर उसे खलिहान में एकत्र करते थे।
माप-तौल और मूल्य
ज्ञाताधर्मकथांग में माप-तौल की इकाई के रूप में मान, उनमान और प्रमाण का उल्लेख मिलता है।194 उस समय क्रय-विक्रय की सुविधा हेतु मापतौल और मूल्य निर्धारण की चार प्रकार की पद्धतियाँ प्रचलित थीं- गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य ।
गणिम
गिनकर बेची जाने वाली वस्तुएँ 'गणिम' कहलाती थी। एक, दस, सौ,
182