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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन हजार, लाख, करोड़ आदि गणना के परिमाण माने जाते थे। धरिम तुला पर तौल कर बेची जाने वाली वस्तुएँ ' धरिम' कहलाती थी। अर्धकर्ष, कर्ष, पल, अर्धपल, तुला, अर्धभार आदि तौल के मानक प्रचलित थे। मेय माप कर बेची जाने वाली वस्तुएँ मेय' कही जाती थी। माप तीन प्रकार के थे- धान्यमान, रसमान और अवमान।98 परिच्छेद्य गुण की परीक्षा करके बेची जाने वाली वस्तुएँ 'परिच्छेद्य' कहलाती थी। इनमें सोना, चाँदी, मणि, मुक्ता, शंख, प्रवाल, रत्न आदि माने गए थे। इनको तौलने के लिए गुंजा-रत्ती, गुंजा-कांकणी, निष्पाव, मंडल, सुवर्ण प्रतिमान थे।199 समय मापने के लिए आवलिका, श्वास, उच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग-वर्षशत से लेकर शीर्ष प्रहेलिका का उपयोग होता था।200 ज्ञाताधर्मकथांग में मूल्य निर्धारण सिद्धान्तों का कोई उल्लेख नहीं मिलता और न ही राज्य के नियंत्रण का संकेत मिलता है। इससे स्पष्ट है कि मूल्य निर्धारण पूर्णतः क्रेता-विक्रेता के विवेक और आपसी समझ के आधार पर किया जाता था, इसमें किसी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप नहीं था। मुद्रा-सिक्का प्राचीनकाल से ही भारत में वस्तुओं के क्रय-विक्रय और विनिमय हेतु सिक्कों का प्रचलन था। जैन ग्रंथ सूत्रकृतांग में 'मास', 'अर्धमास' और 'रूवग' को क्रय-विक्रय का साधन कहा गया है।201 पिंडनियुक्ति के अनुसार दास-दासी को उनका पारिश्रमिक सोने-चांदी और तांबे में दिया जाता था।202 जैन ग्रंथों में अनेक स्थानों पर हिरण्य और सुवर्ण के उल्लेख आए हैं। इससे प्रतीत होता है कि हिरण्य और सुवर्ण उस युग के प्रचलित सिक्के थे। ज्ञाताधर्मकथांग में कई स्थानों पर इनका उल्लेख मिलता है।203 सोने और चांदी के माशे का नामोल्लेख भी मिलता है ।204 राजा श्रेणिक ने अपनी पुत्रवधूओं को आठ करोड़ 'हिरण्य' और आठ करोड़ 'सुवर्ण' प्रदान किए थे।205 183
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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