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ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन प्राचीनकाल में जलयान आज जैसे सुदृढ़ नहीं होते थे । माकन्दी पुत्रों का पोतवहन तूफान में फंस गया और कुछ ही देर में भग्न होकर डूब गया । 175 जल-वाहन
नौका, पोत और जलयान जलमार्ग से यात्रा के साधन थे । समुद्र में चलने वाले जलयान के लिए ज्ञाताधर्मकथांग में 'पोतवह' (पोतवहन) शब्द का प्रयोग किया गया है। 176 जलपोत लकड़ी के तख्तों से निर्मित होते थे । इनमें पतवार, रज्जु और डंडे लगे रहते थे। 77 जलपोतों में कपड़े के पाल लगे रहते थे जिनकी सहायता से हवा कम होने पर भी जलपोत तीव्र गति से चलता था ।78 व्यापारिक जलमार्ग
देश की नदियाँ प्रमुख व्यापारिक नगरों को परस्पर जोड़ती थी । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि हस्तीशीर्ष नगर के पोतवणिक कालिकद्वीप तक गए थे।79 चम्पा के माकन्दी पुत्र जलमध्य नौका के भग्न हो जाने पर पटिया के सहारे रत्नद्वीप तक पहुँच गए। 180
3. वायुमार्ग
सौधर्मकल्पवासी देव अपने रत्नमय विमान से निकलकर पृथ्वीतल पर अपने मित्र अभयकुमार के पास आता है। 181
ज्ञाताधर्मकथांग में आकाश में उड़ने वाले देवयानों और विमानों का वर्णन तो मिलता है 182 लेकिन व्यापार अथवा किसी आर्थिक लाभ हेतु इस मार्ग के उपयोग के सम्बन्ध में कोई विवरण नहीं मिलता है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि उस समय देशीय और अन्तर्देशीय के लिए मुख्यतः दो ही मार्ग थे 183 - जल और स्थल । जल और स्थल के विभिन्न साधनों के परिणामस्वरूप व्यापार व उद्योग उन्नतावस्था में था। 184
आजीविका के साधन
ज्ञाताधर्मकथांग में मनुष्य की आजीविका हेतु छः साधनों का उल्लेख मिलता है 185, जिनमें असि ( शस्त्रास्त्र या सैनिक वृत्ति), मसि ( लेखन या लिपिक वृत्ति), कृषि ( खेती और पशुपालन), शिल्प ( कारीगरी एवं कला कौशल), शिक्षा व व्यापार वाणिज्य हैं। इन छहों साधनों में सामाजिक जीवन के प्रायः सभी व्यवसाय शामिल हो जाते हैं ।
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