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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन किए जाने का उल्लेख भी मिलता है किन्तु मसालों में आने वाले पदार्थों का उल्लेख नहीं मिलता है। प्रातःराश
ज्ञाताधर्मकथांग के एक प्रसंग से यह भी स्पष्ट होता है कि उस समय सुबह के नाश्ते का प्रचलन था। धन्य सार्थवाह जब सामुद्रिक यात्रा के लिए जाता है तो सब सहयात्रियों के साथ सुबह का नाश्ता करता है।263 भोजन रखने का पात्र
ज्ञाताधर्मकथांग में एक स्थान पर भोजन रखने के पिटक-पात्र (बांस की छाबड़ी) का तथा घड़े का उल्लेख मिलता है।264 अन्य किसी भी पात्र का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में नहीं मिलता है। ल्हावणी बांटना
ज्ञाताधर्मकथांग के एक प्रसंग से यह प्रकट होता है कि उस समय भी ल्हावणी बांटने की प्रथा थी। त्यौहार आदि विशेष प्रसंगों पर स्वजनों के घर जो मिठाई बांटी जाती है, उसे ल्हावणी बांटना कहा जाता है ।265 आज भी ल्हावणी बांटने की प्रथा समाज में प्रचलित है। गर्भवती का आहार
आहार की सामान्य वर्जनाओं के साथ कुछ विशेष अवस्थाओं में किए जाने वाले आहार का निर्देश भी ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है ।26 गर्भवती को अति शीत, उष्ण, तीखा, कटुक, कषैला, खट्टा और मधुर आहार नहीं करना चाहिए।67 देश-कालानुसार गर्भ के लिए हित, मित एवं पथ्यकार268 तथा गर्भपोषक आहार करना चाहिए।269 सामूहिक भोजन
ज्ञाताधर्मकथांग में सामूहिक भोजन का प्रचलन भी देखा जाता है। सोम, सोमदत्त और सोमभूमि ब्राह्मण आपस में विचार-विमर्श कर प्रतिदिन बारी-बारी से प्रत्येक के घर एक साथ बैठककर भोजन करने का निर्णय करते हैं।7° इससे प्रतीत होता है कि उस समय सामूहिक भोजन करने की व्यवस्था प्रचलित थी। भोजनशालाएँ ___ ज्ञाताधर्मकथांग में भोजन बनाने के स्थान के रूप में भोजनशालाओं का उल्लेख मिलता है। भोजनशाला (महानसशाला) सैंकड़ों खंभों वाली एवं अत्यन्त
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