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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन खानपान जीवन के लिए भोजन (आहार) प्राथमिक आवश्यकता है। जैन दर्शन में आहार को परिभाषित करते हुए आचार्यों ने कहा है- “औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर और छहों पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण को आहार कहते हैं।245" ज्ञाताधर्मकथांग के विविध प्रसंगों में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन की चर्चा हुई है।46 असणं, पाणं आहार में आने वाली कुछेक खाद्य वस्तुओं के नाम भी मिलते हैं- ककड़ी, फूटककड़ी (मालूक)247, सरिसवया (सरसों)248, कुलथ नामक धान्य249, धान्यमास (उड़द)250, अरस (हींग आदि संस्कार से रहित)5), शालि-अक्षत (चावल)252, तंडुल (चावल), आटा, गोरस253, घी, तेल, गुड, खांड।254 रस ज्ञाताधर्मकथांग में रस को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। कटुरस, तिक्त रस, कषाय, अम्ल व मीठा-मधुर रस का उल्लेख मिलता है ।255 अरस (हींग आदि संस्कार से रहित) और विरस (स्वादहीन) का उल्लेख भी आया है। पेय ज्ञाताधर्मकथांग में अनेक प्रकार के पानी (पेय पदार्थों) का उल्लेख मिलता है। यथा-सज्जी के खार का पानी257, गुड़ का पानी, खांड का पानी, पोर (ईख) का पानी आदि258 द्रौपदी के स्वयंवर में अनेक प्रकार की मदिरा भी राजाओं के खाने-पीने की सामग्री के साथ रखी गई थी, यथा- सुरा, मद्य, सीधु और प्रसन्ना आदि- ये मदिरा की ही जातियाँ हैं ।25सुबुद्धि अमात्य और जितशत्रु के प्रसंग के आधार पर कहा जा सकता है कि उस समय नाली के गंदे पानी को स्वच्छ बनाने की वैज्ञानिक विधि प्रचलित थी।260 शर्करा ज्ञाताधर्मकथांग में खांड, गुड़, शक्कर, मत्संडिका (विशिष्ट प्रकार की शक्कर), पुष्पोत्तर एवं पद्मोत्तर जाति की शर्करा261 आदि का उल्लेख इस बात की ओर इंगित करता है कि उस समय मिष्टान्न का भी खूब प्रचलन था। तेल-मसाले ज्ञाताधर्मकथांग में शाक-सब्जी बनाने के लिए तेल और मसाले262 प्रयुक्त 134
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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