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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन माता संतान का जन्म, भरण-पोषण, शिक्षा और विवाह का कार्य माता ही करती थी। 2 माता का उत्कृष्ट स्वरूप प्राचीनकाल से चला आ रहा है। निर्माण और संवृद्धि से माता का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध था । जब ब्रह्मचारी अपना अध्ययन समाप्त कर घर लौटता था तब आचार्य उसे माता की पूजा देवता की तरह करने का निर्देश देते थे | 3 1 बच्चे की प्रथम गुरु माता ही होती है । महाभारत में कहा गया है कि आचार्य सदा दस श्रोत्रियों से बढ़कर है। पिता दस उपाध्यायों से अधिक महत्व रखता है और माता की महत्ता दस पिताओं से भी अधिक है । वह अकेली ही अपने गौरव द्वारा सारी पृथ्वी को गौरवान्वित कर देती है । अतः माता के समकक्ष कोई दूसरा गुरु नहीं है । 34 माता के लिए कहा गया है कि उसकी जैसी छाया, आश्रय-स्थल, रक्षा-स्थल और प्रिय वस्तु कोई नहीं है। स्मृतिकारों ने भी माता को 'परमगुरु' मानकर परिवार और समाज में उसकी महिमा का गुणगान किया है 136 ज्ञाताधर्मकथांग में माता के प्रति आस्था एवं श्रद्धा माता धारिणी और पुत्र मेघकुमार के मध्य संवाद (वैराग्य, दीक्षा की आज्ञा ) 37 पुत्र मेघकुमार के प्रति स्नेहातिरेक व माता के वात्सल्य को ही उजागर करता है। माता धारिणी के कहने पर मेघकुमार द्वारा एक दिन का राजपद भोगने की आज्ञा का पालन करना माँ के वैशिष्टय को उजागर करता है । 39 संतान की इच्छा सभी माताएँ रखती हैं । वंध्या स्त्री को कुल में अच्छा नहीं माना जाता है, उसका मुँह देखना भी बुरा माना जाता है। संतान की प्राप्ति न होने पर वह उदास, खिन्न एवं अप्रसन्न रहती है । ज्ञाताधर्मकथांग में धन्यसार्थवाह की पत्नी भद्रा संतान न होने कारण अपने आपको अधन्य, पुण्यहीन, कुलक्षणा और पापिनी मानती है। संतान की प्राप्ति के लिए वह अनेक देवी-देवताओं की मनौती करती है, जिससे उसे पुत्र की प्राप्ति होती है। 41 संतान का वियोग माता के लिए असह्य होता है । ज्ञाताधर्मकथांग में धन्य . सार्थवाह के पुत्र देवदत्त, पुत्री सुंसमा " का अपहरण और उनकी हत्या माता को शोकविह्वल कर देते हैं । पुत्रहन्ता विजयचोर को जब धन्य सार्थवाह मजबूरन अपने हिस्से की खाद्य सामग्री देता है और जब इस बात को भद्रा सुनती है तो वह अपने पति धन्य सार्थवाह से नाराज हो जाती है । यह बात माता का पुत्र के प्रति 116
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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