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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन जोश का बेजोड़ संगम हो जाता है जो परिवार की मान-मर्यादा को बढ़ाता ज्ञाताधर्मकथांग में जिनरक्षित की मृत्योपरान्त भी जिनपालित अपने मातापिता के साथ सुखपूर्वक रहता है। इसी प्रकार महापद्मराजा द्वारा दीक्षा ग्रहण कर लेने के बाद उसके पुत्र पुंडरीक द्वारा राज्य के कुशल संचालन का उल्लेख भी मिलता है ।28 संयुक्त परिवार की उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि इसके द्वारा व्यक्ति को आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त होती है तथा व्यक्ति हर प्रकार से संरक्षित अनुभव करता है। इतना सब कुछ होते हुए भी संयुक्त परिवार में स्त्री पुरुष सम्बन्धों का समुचित विकास नहीं हो पाता है जिससे जीवन बिखरने लगता है। यही कारण है कि संयुक्त परिवार व्यवस्था दिनों-दिन टूटती जा रही है। संयुक्त परिवार में अनेक सदस्य होते हैं। माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्रपुत्री, पुत्रवधू आदि की एक संयुक्त कड़ी है- संयुक्त परिवार। इनके आपसी सम्बन्धों की छाया में फलता-फूलता है- संयुक्त परिवार। परिवार में इन सदस्यों की भूमिका का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार हैपिता परिवार में सबसे बड़ा पुरुष सदस्य ही संचालक और सम्पत्ति का व्यवस्थापक होता है। परिवार का सम्पूर्ण दायित्व उसी पर माना जाता है, जो कर्ता कहा जाता है। यह पद प्रायः पिता को ही मिलता है। रघुवंश में विनय, रक्षण और भरण के तीन कार्य बताए गए हैं। पिता के लिए पुत्र प्रीति-सदृश है। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार जब माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा मांगता है तो वे उसे अनेक प्रकार के गृहस्थ सुखों को समझाते हैं तथा गृहस्थ जीवन में रहने के लिए प्रेरणा करते हैं। इससे पिता की पुत्र के प्रति प्रीति सहज ही देखी जा सकती है। पुत्र के लिए पिता सर्वस्व है, इसलिए मेघकुमार अपने माता-पिता के कहने पर एक दिन का राजपद स्वीकार कर लेता है। कुटुम्ब का सर्वोच्च व्यक्ति होने के कारण पिता सदस्यों के प्रति सहृदय, जागरूक और बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहता था। 115
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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