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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
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रहते, एक ही जगह पकाया हुआ भोजन करते तथा सर्व सामान्य जमीनजायदाद का उपयोग करते । स्त्रियाँ छड़ने-पिछाड़ने, पीसने - कूटने, रसोई बनाने, भोजन परोसने, पानी भरने और बर्तन माँजने आदि का काम करती । परिवार की विशेषताएँ
परिवार की विशेषताओं के विवेचन से पूर्व इसकी व्युत्पत्ति जानना प्रासंगिक होगा- ‘परिवार' शब्द परि उपसर्गपूर्वक 'वृ' धातु से 'घञ' प्रत्यय का निष्पन्न रूप है, जिसका अर्थ है समूह अर्थात् परिवार व्यक्तियों का समूह या संगठन है।
विश्व के हर कोने में परिवार का स्वरूप भिन्न-भिन्न पाया जाता है लेकिन कुछ सामान्य विशेषताएँ होती हैं, जो प्रायः सभी परिवारों में न्यूनाधिक पाई जाती है। कैकाइवर तथा पेज' ने ऐसी आठ विशेषताएँ बतलाई हैं, इनका ज्ञाताधर्मकथांग के विशेष संदर्भ में संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार हैं
1.
सार्वभौमिकता
परिवार सभी समाजों और सभी कालों में पाया जाता है अर्थात् इसका संगठन सार्वभौमिक है। परिवार का अस्तित्व मानव जाति के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है ।
भावनात्मक आधार
परिवार का महल भावनाओं की नींव पर खड़ा किया जाता है। परिवार यौन-सम्बन्ध, वात्सल्य, लालन-पालन, प्रेम, सहयोग, माता-पिता की सुरक्षा आदि अनेक स्वाभाविक भावनाओं पर आधारित होता है । ज्ञाताधर्मकथांग में धन्य सार्थवाह की भार्या भद्रा उन माताओं को धन्य, पुण्यशालिनी और वैभवशालिनी बतलाती है जिन्होंने पुत्र या पुत्री को जन्म दिया। चूंकि उसके कोई संतान नहीं है, अतः वह भावनाओं के अतिरेक में आकर अपने आपको पापिनी और कुलक्षणा मानने लगती है।
2.
3.
रचनात्मक प्रभाव
परिवार का रचनात्मक प्रभाव भी सदस्य पर पड़ता है। परिवार सदस्य के चरित्र-निर्माण व व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बालक पर परिवार में जो संस्कार पड़ते हैं वे अमिट होते हैं और उसका
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