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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन भविष्य इन्हीं संस्कारों के साए में पल्लवित-पुष्पित होता है। ज्ञाताधर्मकथांग में थावच्चा गाथा पत्नी अपने पुत्र को संस्कारित करने और ज्ञानवान बनाने के लिए कलाचार्य के पास भेजती है। सीमित आकार परिवार अपने आकार में सीमित होता है। इसके वे ही सदस्य होते हैं जिनमें किसी न किसी प्रकार का रक्त सम्बन्ध होता है और जो मूलप्रवृत्तियों की पूर्ति के लिए परस्पर सहायक सिद्ध हो सकते हैं। लेकिन ज्ञाताधर्मकथांग में एकाधिक प्रसंगों में इसके ठीक विपरीत बात सामने आती है यानी रक्त-सम्बन्ध के अलावा कर्मचारियों-सेवकों को भी 'कौटुम्बिकजन' कहकर सम्मान दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि ज्ञाताधर्मकथांग में कौटुम्बिकजन उसे माना गया है जो परिवार या राज्य के संचालन में प्रत्यक्ष सहयोगी बनता था। सामाजिक ढांचे में केन्द्रीय स्थिति परिवार सामाजिक जीवन की वह महत्वपूर्ण इकाई है जिस पर सम्पूर्ण सामाजिक ढांचा आधारित है। वास्तव में परिवार सामाजिक ढांचे की धुरी है। आदिम समाज में तो परिवार अत्यन्त महत्वपूर्ण इकाई था, यद्यपि जटिलताओं में जकड़े आधुनिक समाज में इसके बिखराव की स्थितियाँ बन रही हैं फिर भी इसकी सत्ता को कमतर करके नहीं आंका जा सकता है। सदस्यों का उत्तरदात्वि उत्तरादायित्व का प्रथम परिचय कराने वाला परिवार ही है। परिवार का सदस्य जीवन पर्यन्त परिवार की समृद्धि के लिए अपने सुखों का बलिदान करता है। अन्य किसी संगठन में ऐसी भावना आदर्श मानी जाती है, जिसे वास्तविकता का धरातल कम ही मिल पाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि माकन्दीपुत्र जिनपालित और जिनरक्षित अपने परिवार की आर्थिक समृद्धि के लिए बारहवीं बार लवण समुद्र की यात्रा करने का निश्चय करते हैं।' सामाजिक नियंत्रण सामाजिक नियंत्रण का एक प्रमुख उपकरण है- परिवार । परम्पराओं व
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