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________________ 1. धर्मास्तिकाय 2. अधर्मास्तिकाय 3. आकाशास्तिकाय 4. जीवास्तिकाय 5. पुद्गलास्तिकाय 6. अद्धासमय स्पष्ट है कि भगवतीसूत्र में लोक को पंचास्तिकाय एवं षड्द्रव्यात्मक दोनों ही रूपों में स्वीकार किया गया है। व्यवस्था की दृष्टि से दी गई उपर्युक्त परिभाषा से लोक के स्वरूप की वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो जाती है। इस लोक में गति है अतः इसे धर्मास्तिकाय रूप कहा गया है। गतिशील पदार्थ निरन्तर गति ही नहीं करते वरन् ठहरते भी हैं, अतः ठहरने की स्थिति होने के कारण इसे अधर्मास्तिकाय रूप कहा गया है। इस लोक में चेतन द्रव्य भी हैं और अचेतन द्रव्य भी हैं अतः इस लोक को जीवास्तिकाय रूप व पुद्गलास्तिकाय रूप कहा गया है। चूंकि इन सभी द्रव्यों को स्थित रहने के लिए अवकाश (आकाश) प्राप्त है अतः इसे आकाशास्तिकाय रूप कहा गया है। लोक में स्थित इन पाँचों द्रव्यों में निरन्तर परिवर्तन भी होता रहा है, जो कि काल द्रव्य का स्वभाव है। इन छ: द्रव्यों की सह-अवस्थिति ही लोक है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश11 में लोक स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि 'आकाश के जितने भाग में जीव, पुद्गल आदि षड्द्रव्य देखे जाते हैं, वह लोक है और उसके चारों तरफ शेष अनन्त आकाश अलोक है, ऐसा लोक का नियुक्ति अर्थ है अथवा षड्द्रव्यों का समवाय लोक है। आकार के आधार पर ग्रंथ में लोक की परिभाषा इस प्रकार दी गई है - गोयमा! सुपतिट्ठिगसंठिते लोए पण्णत्ते, हेट्ठा वित्थिपणे जाव उप्पिं उद्धमुइंगाकार संठिते-(7.1.5) अर्थात् लोक सुप्रतिष्ठिक (सकोरा) आकार का है। वह नीचे से चौड़ा, मध्य में संकरा व ऊपर ऊर्ध्व मृदंग के आकार का है। अलोक पोले गोले के आकार का है।12 भगवतीसूत्र में दी गई लोक की इस परिभाषा में उसे 'सुप्रतिष्ठिक' आकार वाला कहा गया है। तीन शरावों में से एक शराव ओंधा, दूसरा सीधा और तीसरा उसके ऊपर ओंधा रखने से जो आकार बनता है, उसे सुप्रतिष्ठिक आकार वाला या त्रिशरावसंपुटाकार कहा जाता है। लोक के कार13 भगवतीसूत्र में लोक के चार प्रकार बताये गये हैं 1. द्रव्यलोक 2. क्षेत्रलोक 3. काललोक 4. भावलोक। __ इसे चतुःपक्षात्मक लोक सिद्धान्त कहा जा सकता है। स्कन्दक परिव्राजक के दृष्टान्त में द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक व भावलोक के स्वरूप को समझाते भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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