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________________ वाला मुनि इतने ही समय में 21 बार जम्बूद्वीप की प्रदक्षिणा कर लेता है। इस द्रुत गति के सामने राकेट की गति भी धीमी है। आध्यात्मिक शक्तियाँ जब जागृत हो जाती हैं तो व्यक्ति रूपी-अरूपी पदार्थों, अन्तर्मानस के विचारों आदि सभी को जान लेता है। अवधिज्ञान, मन:पर्यव ज्ञान और केवलज्ञान के विवेचन में इसका उल्लेख हुआ है। 15वें शतक में गोशालक के प्रकरण में तेजोलब्धि की शक्ति का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इससे अंग, बंग आदि साढ़े सोलह देश भस्म किये जा सकते हैं। स्पष्ट है कि भौतिक शक्तियों से आध्यात्मिक शक्तियाँ श्रेष्ठतर होती हैं। सांस्कृतिक महत्त्व __ जैन धर्म व दर्शन का प्रमुख ग्रंथ होते हुए भी भगवतीसूत्र अपने अन्दर सांस्कृतिक मूल्यों को समेटे हुए है। तत्कालीन समाज व संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण पहलू इसमें उजागर हुए हैं। समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था आदि को यह ग्रंथ उजागर करता है। त्यौहार, विवाह, आपसी सम्बन्ध, वस्त्र, आमोद-प्रमोद के साधन आदि की जानकारी इस ग्रंथ के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। जयन्ती श्राविका की भगवान् महावीर से तत्त्व-चर्चा इस बात की ओर संकेत करती है कि तत्कालीन समाज में नारी का प्रमुख स्थान था।1 इस ग्रंथ का अपना ऐतिहासिक महत्त्व भी है। भगवान् महावीर के जीवन के अनछुए पहलू भी इस ग्रंथ में उजागर हुए हैं। एक प्रसंग में स्वयं भगवान् महावीर ने अपने मुख से यह स्वीकार किया है कि वे देवानन्दा ब्राह्मणी के आत्मज हैं।12 आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक मंखली गोशालक का विस्तृत जीवन चरित इसमें वर्णित है। इससे आजीविक मत के इतिहास एवं सिद्धान्तों की जानकारी प्राप्त होती है। पार्थापत्य व उनके अनुयायियों द्वारा मान्य चातुर्याम धर्म के उल्लेख यह स्पष्ट करते हैं कि उस समय पार्थापत्य के अनुयायियों का स्वतंत्र सम्प्रदाय था, जो कि धीरे-धीरे भगवान् महावीर के ज्ञान से प्रभावित होकर पंचमहाव्रत को स्वीकार कर रहे थे। राजनैतिक दृष्टि से भी यह ग्रंथ अत्यंत महत्त्व रखता है। इससे उस समय की राजनैतिक स्थिति का आकलन किया जा सकता है। महावीर युग में भारत कई छोटे-छोटे जनपदों में बंटा था, जो प्रायः आपस में लड़ते रहते थे। ग्रंथ के सातवें शतक में वैशाली में हुए महाशिलाकण्टकसंग्राम व रथमूसलसंग्राम इन दो युद्धों का मार्मिक वर्णन आया है। आर्थिक दृष्टि से भी प्रस्तुत ग्रंथ में तत्कालीन भगवतीसूत्र का महत्त्व __61
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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