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समाज में प्रचलित व्यवसाय, खाद्य, उत्पादन, आवागमन के साधन आदि के उल्लेख प्राप्त होते हैं।
भौगोलिक दृष्टि से यह ग्रंथ इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि इसमें लोक व अलोक दोनों पर ही विवेचन प्राप्त होता है। आज जो लोग विश्व (यूनिवर्स) के रहस्यों को सुलझाने में लगे हैं, उनके लिए यह ग्रंथ महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत ग्रंथ में लोक-अलोक के आकार, उसमें रहने वाले मनुष्यों, नारकों व देवों का विस्तृत वर्णन किया गया है। भौगोलिक दृष्टि से कई प्राचीन नगरों के उल्लेख भी इस ग्रंथ में प्राप्त होते हैं, जिनके बारे में शोध द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि आज वे नगर कहाँ व किस रूप में हैं। वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक महत्त्व
धार्मिक, दार्शनिक व सांस्कृतिक मूल्यों को अपने में समेटने वाला यह ग्रंथ आज वैज्ञानिक युग में भी अपनी सार्थकता रखता है। जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित शास्त्र, गर्भशास्त्र, खगोल विज्ञान व स्वप्रशास्त्र जैसे विषयों का विवेचन इसे आधुनिक विज्ञान के समकक्ष खड़ा कर देता है।
__ जीव विज्ञान की दृष्टि से यह ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्यों को उजागर करता है। प्रस्तुत ग्रंथ में पृथ्वीकाय आदि स्थावर जीवों में जीवत्व की प्ररूपणा कर उनमें आहार, श्वास, चैतन्य, वेदना आदि की स्थितियों को स्पष्ट किया गया है। वनस्पतिकायिक जीवों के लिये यह कहा गया है कि वे वर्षाऋतु में सर्वाधिक आहार करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक जगत में डॉ. जगदीश चन्द्र बोस के प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि वनस्पति में जीवन होता है, वह प्रेम व घृणा का प्रदर्शन करती है। वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप परीक्षण द्वारा पानी की एक बूंद का सूक्ष्म निरीक्षण कर उसमें असंख्य सूक्ष्म प्राणियों के अस्तित्व को स्वीकार किया है। ___ भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित परमाणु का स्वरूप व शक्ति आज रसायन विज्ञान की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भगवान् महावीर ने परमाणु को अभेद्य, अछेद्य व अदाह्य बताया है तथा उसकी सूक्ष्मता को प्रतिपादित करते हुए उसे इन्द्रियातीत कहा है। परमाणु में गति को स्वीकार करते हुए उसकी तीव्रता का प्रतिपादन किया है। परमाणु में गति तथा उसकी सूक्ष्मता आदि वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत है। आज वैज्ञानिक परमाणु बम की जिस विनाशकारी शक्ति की बात करते हैं, उसी सन्दर्भ में महावीर ने तेजालेश्या की अपरिमेय शक्ति का उल्लेख हजारों वर्ष पूर्व भगवतीसूत्र में किया है। अजीव तत्त्व विवेचन में पुद्गलास्तिकाय
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन