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संयोग-वियोग का विस्तार से निरूपण है। दो परमाणुओं से लेकर अनन्त परमाणुओं के संयोग व विभाग की भंगों के द्वारा निरूपणा है । परमाणु पुद्गल के संघात भेद से होने वाले सात प्रकार के पुद्गल परिवर्त्तो की विवेचना है । अठारह पापस्थानों, अवकाशान्तर, तनुवात - घनवात- घनोदधि, पृथ्वी, धर्मास्तिकाय से लेकर अद्धासमय तक में वर्णादि की प्ररूपणा की गई है । खगोल विज्ञान की दृष्टि से यह शतक विशेष रूप से पठनीय है। 'राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है' इस मान्यता का खण्डन करते हुए चन्द्रग्रहण के कारण को स्पष्ट किया गया है। सूर्य को 'आदित्य' व चन्द्रमा को 'शशि' कहने के कारणों, सूर्य-चन्द्र के कामभोगों, लोक का परिमाण, देवों के पाँच प्रकार - भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव व भावदेव का विवेचन है । इस शतक के अन्तिम उद्देशक में आत्मा के - द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योग-आत्मा, उपयोग-आत्मा, ज्ञान- आत्मा, दर्शन - आत्मा, चारित्रआत्मा, वीर्यात्मा, इन आठ भेदों का उल्लेख है ।
सत्तरहवां शतक - इस शतक में सत्तरह उद्देशक हैं, जिनमें जीवों से संबंधित आध्यात्मविज्ञान की विशद विचारणा की गई है। प्रथम उद्देशक में कूणिक राजा के उदायी और भूतानन्द नामक हाथियों की भावी गति तथा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन हुआ है । द्वितीय उद्देशक में क्रियाओं पर विचार किया गया है साथ ही आत्मा के औदयिक आदि छः भावों का वर्णन है। धर्मी, अधर्मी और धर्माधर्मी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जिसने प्राणातिपात आदि पाप कर्मों का पूर्ण प्रत्याख्यान किया है वह धर्मी है, जिसने पापकर्म का प्रत्याख्यान नहीं किया है वह अधर्मी है और जिसने कुछ किया है, कुछ नहीं किया है वह धर्मा-धर्मी है । इसी प्रकार जीव के बाल, पण्डित व बालपण्डित भेद किये हैं । जीव के कर्मों को तथा वेदन को आत्मकृत बताते हुए जीव में कर्ता व भोक्ता भाव को स्पष्ट किया है। पाँचवें उद्देशक में ईशानेन्द्र की सुधर्मासभा का सुन्दर वर्णन है । बारहवें उद्देशक में एकेन्द्रिय जीवों में आहार, श्वासोच्छवास, आयुष्य, शरीर आदि की समानताअसमानता तथा उनमें पाई जाने वाली लेश्याओं का वर्णन हुआ है। तेरहवें से सत्तरहवें उद्देशक में नागकुमार, सुवर्णकुमार आदि देवों के विषय में विभिन्न दृष्टियों से विचार हुआ है।
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बीसवां शतक - बीसवें शतक में दस उद्देशक हैं । सर्वप्रथम विकलेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय जीवों में आहार, लेश्या, शरीर आदि का विवेचन हुआ है। अस्तिकायों विवेचन में धर्मास्तिकायादि पाँच अस्तिकायों के अनेक पर्यायवाची शब्दों का
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
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