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________________ इसकी विषयवस्तु की विविधता का उल्लेख करते हुए मधुकर मुनि' ने लिखा है कि 'विषयवस्तु की दृष्टि से इसमें विविधता है । विश्वविद्या की ऐसी कोई विधा नहीं है, जिसकी प्रस्तुत आगम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चर्चा न की गई हो । प्रश्नोत्तरों के द्वारा जैन तत्त्वविद्या, इतिहास की अनेक घटनाएँ, विभिन्न व्यक्तियों का वर्णन और विवेचन इतना विस्तृत किया गया है कि प्रबुद्ध पाठक सहज ही विशाल ज्ञान प्राप्त कर लेता है । इस दृष्टि से इसे प्राचीन जैन ज्ञान का विश्वकोश कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी । ' व्याख्याप्रज्ञप्ति में जैन दर्शन के ही नहीं, दार्शनिक जगत के प्रायः सभी मूलभूत तत्त्वों का विवेचन तो है ही, इसके अतिरिक्त इसमें भूगोल, खगोल, इहलोक-परलोक, स्वर्ग-नरक, प्राणिशास्त्र, रसायनशास्त्र, गर्भशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, गणितशास्त्र, ज्योतिष, इतिहास, मनोविज्ञान, पदार्थवाद, अध्यात्मवाद आदि कोई भी विषय अछूता नहीं है । इस प्रकार विभिन्न प्रकार के ज्ञान-विज्ञान से भरे इस ग्रंथ में प्रतिपाद्य विषयवस्तु का आकलन कठिन कार्य है । अंगसुत्ताणि भाग दो में इसकी विस्तृत विषय सूची उपलब्ध है । मधुकर मुनि ने व्याख्याप्रज्ञप्ति ' भाग एक की प्रस्तावना में इसकी विषयवस्तु को दस खण्डों में विभाजित कर इसमें प्रतिपादित विभिन्न विषयों को क्रमबद्धता देने का प्रयास किया है। 1. आचारखण्ड- साध्वाचार के नियम, आहार-विहार एवं पाँच समिति, तीनगुप्ति, क्रिया, कर्म, पंचमहाव्रत आदि से सम्बन्धित विवेकसूत्र, सुसाधु, असाधु, सुसंयत, असंयत, संयतासंयत आदि के आचार के विषय में निरूपण आदि । 2. द्रव्यखण्ड- षट्द्द्रव्यों का वर्णन - पदार्थवाद, परमाणुवाद, मन, इन्द्रियाँ, बुद्धि, गति, शरीर आदि का निरूपण । 3. सिद्धान्तखण्ड - आत्मा, परमात्मा, (सिद्ध-बुद्ध-मुक्त), केवलज्ञान आदि ज्ञान, आत्मा का विकसित एवं शुद्ध रूप, जीव, अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, कर्म, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, क्रिया, कर्मबन्ध एवं कर्म से विमुक्त होने के उपाय आदि । 4. परलोकखण्ड - देवलोक, नरक आदि से सम्बन्धित समग्र वर्णन; नरकभूमियों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श का तथा नारकों की लेश्या, कर्मबन्ध, आयु, स्थिति, वेदना आदि का तथा देवलोकों की संख्या, वहाँ की भूमि, परिस्थिति, देवदेवियों की विविध जातियाँ - उपजातियाँ, उनके निवास स्थान, लेश्या, आयु, कर्मबन्ध, स्थिति, सुखभोग आदि का विस्तृत वर्णन, सिद्धगति एवं सिद्धों का वर्णन । विषयवस्तु 39
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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