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________________ विषयवस्तु भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति का उल्लेख श्वेताम्बर साहित्य में द्वादशांगी के पाँचवें अंग ग्रंथ के रूप में मिलता है । यदि ग्यारह अंगों को बारहवें अंग दृष्टिवाद से उद्धृत माना जाये तो दिगम्बर साहित्य के आधार पर व्याख्याप्रज्ञप्ति को परिकर्म के पाँचवें अधिकार (व्याख्याप्रज्ञप्ति ) से उद्धृत माना जा सकता है । कषायपाहुड' में परिकर्म के पाँच अधिकारों का उल्लेख किया गया है - चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूदीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति । इन दोनों की विषयवस्तु भी समान है । व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक परिकर्म रूपी - अरूपी, जीव- अजीव, भव्यअभव्य के प्रमाण और लक्षण, मुक्तजीवों तथा अन्य वस्तुओं का वर्णन करता है । समवायांग', नंदीसूत्र' तथा तत्त्वार्थराजवार्तिक में भी व्याख्याप्रज्ञप्ति की विषयवस्तु के प्रतिपादन का उल्लेख मिलता है । समवायांग में इसकी विषयवस्तु का उल्लेख करते हुए कहा है कि इसमें स्वसमय-परसमय, जीव- अजीव व लोक- अलोक का व्याख्यान किया गया है । नाना प्रकार के देवों, नरेन्द्रों, राजर्षियों और अनेक प्रकार के संशयों में पड़े हुए लोगों द्वारा पूछे गये 36000 प्रश्नों के उत्तर श्रमण भगवान् महावीर ने अपने श्रीमुख से दिये हैं । नंदीसूत्र में व्याख्याप्रज्ञप्ति का विषयविवेचन करते हुए कहा है कि इसमें जीवों की, अजीवों की तथा जीवाजीवों की व्याख्या की गई है । स्वसमय-परसमय - स्वपरउभयसमय सिद्धान्तों की व्याख्या, लोकालोक के स्वरूप का निरूपण किया गया है। आचार्य अकलंक' के अनुसार इसमें जीव है या नहीं इस प्रकार के प्रश्नों का निरूपण किया गया है। आचार्य वीरसेन' ने इसकी विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि इसमें 96,000 छिन्न-छेदनयों से ज्ञापनीय शुभ व अशुभ का वर्णन है । उपर्युक्त आगम ग्रंथों में वर्णित विवेचनों से व्याख्याप्रज्ञप्ति की विषयवस्तु का प्रारूप हमारे सामने स्पष्ट हो जाता है। वस्तुतः व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञान का ऐसा महासागर है, जिसकी थाह पाना कठिन है । विविध विषयों का इसमें अक्रमबद्ध विवेचन है। ज्ञान के क्षेत्र में ऐसा कोई विषय नहीं, जिसका वर्णन इसमें न किया गया हो । भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन 38
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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