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व्याख्याप्रज्ञप्ति पर दूसरी वृत्ति आचार्य मलयगिरि की है। यह वृत्ति द्वितीय शतक वृत्ति के रूप में विश्रुत है। इसका शोक प्रमाण 3,750 है। हर्षकुल ने भगवतीसूत्र पर विक्रम संवत् 1583 में एक टीका लिखी। दानशेखर ने व्याख्याप्रज्ञप्ति पर लघुवृत्ति लिखी है। भावसागर व पद्मसुन्दरगणि ने भी व्याख्याप्रज्ञप्ति पर व्याख्याएँ लिखी हैं। आधुनिक युग में भी आचार्यों द्वारा इस विशाल ग्रंथ का अपनी दृष्टि से मूल्यांकन किया जा रहा है। स्थानकवासी परम्परा के आचार्य श्री घासीलाल जी म. ने भगतवीसूत्र पर व्याख्या लिखी है। इन सभी व्याख्याओं की भाषा संस्कृत रही है।
व्याख्याप्रज्ञप्ति पर लिखी गई टीकाओं व व्याख्याओं की भाषा संस्कृतप्राकृत प्रधान होने के कारण जन साधारण के लिए उन्हें समझ पाना बहुत ही कठिन था। तब लोक भाषाओं का प्रयोग करते हुए सरल व सुबोध शैली में संक्षिप्त टीकायें लिखी जाने लगीं। ये टीकायें शब्दार्थ प्रधान थीं। विक्रम की 18वीं शताब्दी में स्थानकवासी आचार्य मुनि धर्मसिंह जी ने सत्ताईस आगमों पर बालावबोध टब्बे लिखे थे। उनमें से एक टब्बा व्याख्याप्रज्ञप्ति पर भी था। धर्मसिंह मुनि ने भगवती का एक यन्त्र भी लिखा है।
टब्बा के पश्चात् अनुवाद युग का प्रारंभ हुआ। भगवतीसूत्र का तीन भाषाओं में अनुवाद मिलता है- अंग्रेजी, गुजराती व हिन्दी। ग्रंथ के 14वें शतक तक का अंग्रेजी अनुवाद Hoernel Appendix ने किया, गुजराती अनुवाद पं. भगवानदास दोशी, पं. बेचरदास दोशी, गोपालदास जीवाभाई पटेल और घासीलाल जी म. आदि ने किया। हिन्दी अनुवाद आचार्य अमोलक ऋषि जी, मदन कुमार मेहता, प. घेवरचन्द जी बांठियां आदि ने किया। युवाचार्य मधुकर मुनि के नेतृत्व में आगम बत्तीसी पर कार्य प्रारंभ हुआ। इसी कार्य के अन्तर्गत व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का मूल, हिन्दी अनुवाद व विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त जैन विश्व भारती, लाडनूं से आचार्य महाप्रज्ञ जी के नेतृत्व में विस्तृत भाष्य सहित 'भगवई' विभिन्न खण्डों में प्रकाशित हो रहा है, जिसमें हिन्दी अनुवाद के साथ-साथ जिनदासमहत्तर-कृत चूर्णि एवं अभयदेवसूरि-कृत वृत्ति भी प्रकाशित है। संदर्भ 1. भगवई (खण्ड-1) सम्पा. आचार्य महाप्रज्ञ, भूमिका, पृ. 15 2. समवायांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 511, 527, पृ. 171, 178 3. नंदीसूत्र, सम्पा. मुनि मधुकर, 76,87, पृ. 152, 179 4. भगवतीवृत्ति, अभयदेव, पृ. 2
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन