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में कर्म पर विस्तृत चर्चा की गई है। जीव स्वकत कर्मों को भोगता है। कर्म कौन बाँधता है, कौन नहीं इसका विस्तार से विवेचन छठे शतक में किया गया है।
ज्ञाताधर्मकथा में मल्लिकुमारी के कथानक द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि स्त्री भी मोक्ष पद को प्राप्त कर सकती है। भगवतीसूत्र में जयन्ती श्राविका द्वारा तत्त्व चर्चा, वैराग्य धारण व मोक्ष प्राप्ति के उल्लेख प्राप्त होते हैं। भगवतीसूत्र व प्रज्ञापनासूत्र
सम्पूर्ण जैन अंग साहित्य में जो स्थान पंचम अंग भगवतीसूत्र का है वही स्थान उपांग साहित्य में प्रज्ञापनासूत्र का है। भगवतीसूत्र की तरह इसे भी जैन तत्त्वज्ञान का बृहत् कोश कहा जा सकता है। इसमें जीव अजीव की प्रज्ञापना करते हए भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से उन पर विचार किया गया है। भगवतीसूत्र में इन सभी विषयों का विवेचन मिलता है। भगवतीसूत्र में अनेक स्थानों पर 'जहा पण्णवणाए' कहकर प्रज्ञापना सूत्र के 1, 2, 5, 6, 11, 15, 17, 24, 25, 26, 27, 28वें पद से प्रस्तुत विषय की पूर्ति करने हेतु सूचना दी गई है। इससे दोनों की विषय साम्यता स्वतः स्पष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार अधिक लोकप्रिय व पूजनीय ग्रंथ होने के कारण व्याख्याप्रज्ञप्ति के साथ 'भगवती' विशेषण जुड़ गया उसी प्रकार प्रज्ञापना उपांग के प्रत्येक पद की समाप्ति पर 'पण्णवणाए भगवईए' कहकर प्रज्ञापना के लिए भगवती विशेषण प्रयुक्त किया गया है। प्रज्ञापना की रचना भी भगवतीसूत्र की तरह प्रश्रोत्तर शैली में की गई है। किन्त, 81वें सूत्र तक प्रश्नकर्ता व उत्तरदाता का उल्लेख नहीं मिलता है। बाद में कुछ जगह गौतम गणधर व महावीर के बीच प्रश्नोत्तर का उल्लेख है। भगवतीसूत्र में प्रायः हर सूत्र में प्रश्नकर्ता व उत्तरदाता का उल्लेख है।
प्रज्ञापना के प्रथम पद में प्रज्ञापना को जीव-अजीव इन भागों में विभक्त किया गया है। अजीव के दो भेद- रूपी व अरूपी कर रूपी में पुद्गल व अरूपी में धर्म, अधर्म, आकाश और अद्धासमय का समावेश किया है। आगे जीव के भेदों-प्रभेदों पर विस्तार से वर्णन है । प्रज्ञापना में वर्णित जीव-अजीव का वर्णन क्रमबद्धता लिए हुए हैं। भगवतीसूत्र में यही वर्णन प्रश्नानुसार है। भगवतीसूत्र व उत्तराध्ययन
जैन अर्धमागधी साहित्य में उत्तराध्ययन का गौरवपूर्ण स्थान है। विषय व भाषा की दृष्टि से यह ग्रंथ प्राचीन है। उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययनों में जो विषयवस्तु वर्णित है, उसका वर्णन भगवतीसूत्र में भी मिलता है। उत्तराध्ययन34 के विनय सूत्र में गुरु-शिष्य संबंधों के उत्कृष्ट विवेचन में अनुशासन को सर्वाधिक
भगवतीसूत्र व अन्य आगम ग्रंथ
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