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________________ चिन्तन किया गया है । भाव की दृष्टि से ज्ञान, दर्शन, वीर्य आदि जीव - भावों तथा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि अजीव - भावों का वर्णन भी किया गया है। भगवतीसूत्र में इन सभी विषयों पर अत्यधिक विस्तार से वर्णन प्राप्त होते हैं, जिनका विस्तृत विवेचन आगे के अध्यायों में है । समवायांग 24 में एकत्व की दृष्टि से 'एगेलोए' 'एगे अलोए' का सिद्धान्त प्रतिपादित है । भगवतीसूत्र 25 में द्रव्य दृष्टि से लोक को एक माना है । समवायांग 26 में बाह्यतप के छ: भेद व आभ्यन्तर तप के छः भेद बताये गये हैं । भगवतीसूत्र में भी बारह प्रकार के तप का विवेचन हुआ है। समवायांगसूत्र 27 में श्रमण भगवान् महावीर द्वारा तीस वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण करने का उल्लेख हुआ है। भगवतीसूत्र28 के पन्द्रहवें शतक में यही उल्लेख प्राप्त होता है कि श्रमण भगवान् महावीर 30 वर्ष की आयु में अनगार हुए। इसी तरह भगवतीसूत्र के अनेक सूत्रों की समवायांग के सूत्रों के साथ समानता दृष्टिगोचर होती है। इसका विस्तृत विवेचन मधुकर मुनि ने समवायांग सूत्र की प्रस्तावना में किया है । 29 भगवतीसूत्र व ज्ञाताधर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कथाग्रंथ है, जिसमें कथा के माध्यम से भव्यजीवों को प्रतिबोध दिया है । ज्ञाताधर्मकथा से तुलना करने पर भगवतीसूत्र का समृद्ध सांस्कृतिक पक्ष सामने आता है। इसमें वर्णित कथानक तत्कालीन समाज व संस्कृति का सजीव चित्र प्रस्तुत करते हैं । ज्ञाताधर्मकथा में वर्णित मेघकुमार के कथानक व भगवतीसूत्र में वर्णित महाबल व जमालि के कथानक में पर्याप्त समानताएँ दृष्टिगोचर होती हैं । मेघकुमार के कथानक में मेघकुमार के जन्म से पूर्व उनकी माता द्वारा स्वप्न-दर्शन, राजा द्वारा दोहद का सम्मान, मेघकुमार का आठ रानियों से विवाह, भगवान् महावीर का नगर में पदार्पण, मेघकुमार का प्रव्रज्या धारण करने का संकल्प, माता द्वारा विलाप आदि प्रसंग महाबल" के चरित्र में ज्यों के त्यों वर्णित हैं । ज्ञाताधर्मकथा के सोलहवें अध्ययन में रानी द्रौपदी के कथानक में द्रौपदी के नामकरण में यह उल्लेख किया गया है कि यह बालिका द्रुपद राजा की पुत्री व चुलनी रानी की आत्मजा है, बालिका का नाम द्रौपदी रखा गया । भगवतीसूत्र 2 में महाबल के कथानक में राजकुमार महाबल का नामकरण भी इसी आधार पर किया जाता है । ज्ञाताधर्मकथा में कर्म, कर्मफल व कर्मक्रिया आदि पर विवेचन प्राप्त होता है । तुम्बे के दृष्टांत में द्वारा यह समझाया गया है कि कर्मों के लेप से भारी आत्मा संसार सागर डूब जाती है जबकि कर्म-विमुक्त आत्मा संसार सागर को पार कर जाती है । भगवतीसूत्र अतः भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन 22
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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