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________________ भगवतीसूत्र और स्थानांग स्थानांगसूत्र के अध्ययन स्थान के नाम से प्रसिद्ध हैं । स्थानांग में भेद व अभेद दृष्टि से तत्त्वचर्चा, आचार- -विवेचन, ज्ञान-मीमांसा, स्व-पर- समय, जीव, जगत, तीर्थंकर, कुलकर परम्परा आदि सभी के उल्लेख हैं । भगवतीसूत्र में भी इन सभी विषयों पर विस्तार से विवेचन किया गया है । तुलनात्मक दृष्टि से कुछ विषय दृष्टव्य हैं। स्थानांग“ में ‘एगे आया' सूत्र द्वारा समस्त जीवों में एकत्व स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। भगवतीसूत्र 7 में चैतन्य को आत्मा से अभिन्न बताते हुए इसी एकत्व का समर्थन किया गया है। स्थानांग में जो कुछ भी है उसे जीव व अजीव दो भागों में विभक्त किया गया है । भगवतीसूत्र में द्रव्य के दो प्रमुख भेद जीव द्रव्य व अजीव द्रव्य प्राप्त होते हैं। स्थानांग " के तृतीय स्थान में लोक के तीन भेद अधोलोक, मध्यलोक व ऊर्ध्वलोक किये गये हैं । भगवतीसूत्र 20 में क्षेत्रलोक के ये तीन भेद करते हुए उनके स्वरूप पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। स्थानांग में देव चार प्रकार के बताये गये हैं- भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और विमानवासी। भगवतीसूत्र में भी देवों के इन चार प्रकारों का विवेचन है । स्थानांग2" में स्वाध्याय के पांच प्रकार; वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा व धर्मकथा का उल्लेख है। भगवतीसूत्र 22 में स्वाध्याय के इन पांचों भेदों का उल्लेख है। यहां पृच्छना के स्थान पर प्रतिपृच्छना शब्द का प्रयोग हुआ है । इसके अतिरिक्त स्थानांग में छ: लेश्या, आठ प्रकार की लोकस्थिति, दसदिशाओं, महावीर द्वारा छद्मस्थ अवस्था में देखे गये दस स्वप्न आदि के नामोल्लेख हैं । भगवतीसूत्र में छ:लेश्या, दस दिशाओं, आठ प्रकार की लोक स्थिति तथा महावीर के दस स्वप्नों का विस्तृत वर्णन है । प्रायः ऐसा प्रतीत होता है कि स्थानांग में जिन विषयों का उल्लेख मात्र किया गया है, भगवतीसूत्र में उन सभी विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। I भगवतीसूत्र व समवायांग अर्धमागधी अंग साहित्य में समवायांग महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। समवायांग 23 में द्रव्य की दृष्टि से जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश आदि का निरूपण किया गया है । क्षेत्र की दृष्टि से लोक, अलोक, सिद्ध-शिला, आदि पर प्रकाश डाला गया है । काल की दृष्टि से समय आवलिका, मुहूर्त्त, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गलपरावर्तन एवं चार गतियों के जीवों की स्थिति आदि पर 1 भगवतीसूत्र व अन्य आगम ग्रंथ 21
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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