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कल्पिकाकल्पिक; महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक एवं निशीथ का उल्लेख है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उपर्युक्त 12 अंगों एवं 14 अंगबाह्यों का लोप हो गया है। इसलिए दिगम्बर जैन सम्प्रदाय पूर्वधर आचार्यों एवं परवर्ती आचार्यों द्वारा रचित जिन ग्रन्थों को आगम की श्रेणी में रखते हैं, उनमें से प्रमुख नाम निम्न हैं1. षट्खण्डागम (छक्खंडागमो) 2. कषायप्राभृत (कसायपाहुडं) 3. आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ - समयसार (समयसारो), प्रवचनसार
(पवयणसारो), पंचास्तिकाय (पंचत्थिकायो), नियमसार (नियमसारो),
अष्टपाहुड (अट्ठपाहुडं) आदि 4. त्रिलोकप्रज्ञप्ति (तिलोयपण्णत्ती) 5. भगवती आराधना (भगवदी आराधणा) 6. मूलाचार (मूलायारो) 7. अन्य ग्रन्थ – गोम्मटसार, क्षपणसार, लोकविभाग आदि।
ये सभी आगम श्रेणी के दिगम्बर ग्रन्थ शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध हैं, जिनकी रचना विभिन्न आचार्यों के द्वारा हुई है। संदर्भ
दोशी, बेचरदास-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग-1), पृष्ठ 10 व्या. सू., शतक 20 उद्देशक 8, सूत्र 7 (20.8.7) नोट- व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र द्वितीय संस्करण (भाग 1, 2, 3, 4) सम्पा. मुनि मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, सर्वत्र व्या.सू. रूप में संदर्भ किया गया है तथा शतक, उद्देशक एवं सूत्र को संक्षेप में संख्या द्वारा व्यक्त किया गया है। व्या. सू. 20.8.1 वही, 5.5.5-6 शास्त्री, कैलाश चन्द्र-जैन साहित्य का इतिहास (पूर्व पीठिका), पृष्ठ-5 भारतीय दर्शन (भाग-1) पृ. 233 जैन, हीरालाल, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 11-12 उत्तराध्ययन, अध्ययन 22 ऋग्वेद, 1.89.6 महाभारत, हरिवंश (पर्व-1)- अध्याय 34, पद्य 15-16, गीता प्रेस, गोरखपुर आचारांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 2.15.745, पृ. 376 उत्तराध्ययन, अध्ययन 23
व्या. सू., 1.9.21-23, 32.9 14. शास्त्री, कैलाश चन्द्र-जैन धर्म, पृ. 2
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशील