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नोट-‘कल्पसूत्र' 'बृहत्कल्पसूत्र' से भिन्न ग्रन्थ है । कल्पसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध का ही एक भाग है, जो दशाश्रुतस्कन्ध के आठवें अध्ययन से विकसित हुआ है। 4 मूलसूत्र
मूलसूत्रों की संख्या एवं नामों के संबंध में श्वेताम्बर - मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में एकरूपता नहीं है। प्राय: निम्नांकित 4 मूलसूत्र माने जाते हैं1. उत्तराध्ययन (उत्तरज्झयणाई)
3. आवश्यक ( आवस्सयं)
2. दशवैकालिक (दसवेयालियं) 4. पिण्डनियुक्ति - ओघनिर्युक्ति (पिंडणिज्जुत्ती-ओहणिज्जुत्ती)
नोट- कुछ आचार्य 'पिण्डनिर्युक्ति-ओघनिर्युक्ति' इन दोनों सूत्रों को अलग
अलग भी मानते हैं ।
2 चूलिका
1. नन्दीसूत्र (नंदिसुत्तं)
2. अनुयोगद्वार (अणुओगद्दाराइं ) स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदायों द्वारा मान्य 32 आगम इन दोनों सम्प्रदायों में 11 अंग, 12 उपांग, 4 मूलसूत्र, 4 छेदसूत्र एवं 1 आवश्यकसूत्र मिलाकर 32 आगम स्वीकृत हैं। 11 अंग
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक द्वारा मान्य सभी अंग सूत्र । 12 उपांग
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक द्वारा मान्य सभी उपांग सूत्र ।
4 मूलसूत्र
1. उत्तराध्ययन ( उत्तरज्झयणाई)
3. नन्दीसूत्र (नंदिसुत्तं) 4 छेदसूत्र
1. दशाश्रुतस्कन्ध (आयारदसाओ) 3. व्यवहार (ववहारो)
दिगम्बर सम्प्रदाय में मान्य आगम
2. दशवैकालिक (दसवेयालियं) 4. अनुयोगद्वार (अणुओगद्दाराई )
बत्तीसवाँ सूत्र आवश्यकसूत्र (आवस्सयं)
2. बृहत्कल्प (कप्पो)
4. निशीथसूत्र ( निसीहं)
तीर्थंकर व आगम-परम्परा
दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य हरिवंशपुराण एवं धवलाटीका में 12 अंगों एवं 14 अंगबाह्यों का उल्लेख है । अंगबाह्यों में सर्वप्रथम सामायिक आदि छः आवश्यकों का उल्लेख है, तत्पश्चात् दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार,
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