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________________ किन्तु, दुर्भाग्यवश यह पूर्व साहित्य सुरक्षित नहीं रहा। समस्त पूर्व के अन्तिमज्ञाता श्रुत केवली भद्रबाहु थे। इनके बाद इस साहित्य का विच्छेद प्रारंभ हो गया। आगम विच्छेद क्रम भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद आगमों का क्रमशः विच्छेद होना प्रारंभ हो गया। इस सम्बन्ध में दो मान्यताएँ प्रचलित हैं। नंदीचूर्णि के अनुसार श्रुतधारक ही लुप्त होने लगे। धवला व जयधवला" के अनुसार श्रुतधारक के लुप्त हो जाने से श्रुत विलुप्त हो गया। वस्तुतः महावीर के निर्वाण के बाद आगमों की मौखिक परम्परा ही चलती रही, किन्तु धीरे-धीरे योग्य शिष्यों के अभाव में तथा अनेक प्राकृतिक आपदाओं के कारण धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करना कठिन कार्य हो गया। श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराएँ इस बात को एक मत से स्वीकार करती हैं कि अंतिम श्रुतकेवली 'भद्रबाहु स्वामी' थे, जो चतुर्दशपूर्व के ज्ञाता थे। इनके समय में भयंकर अकाल पड़ा तथा जैन मत भी श्वेताम्बर व दिगम्बर दो भागों में विभाजित हो गया। इसके साथ ही आगमों का विच्छेद क्रम प्रारंभ हो गया। श्वेताम्बर परम्परा वीरनिर्वाण के 170 वर्ष बाद तथा दिगम्बर परम्परा वीरनिर्वाण के 162 वर्ष बाद भद्रबाहु का स्वर्गवास काल मानती है। इन्हीं के स्वर्गवास के बाद चतुर्दशपूर्वधर का लोप हो गया। केवल दशपूर्वधर रह गये। दशपूर्वधर की परम्परा स्थूलभद्र से आचार्य व्रजस्वामी तक चली। वे वीरनिर्वाण संवत् 551 में स्वर्ग सिधारे। इसके साथ ही दशपूर्वधर भी नष्ट हो गये। मालवणियाजी ने अपनी पुस्तक में यह माना है कि आचार्य व्रजसेन का स्वर्गवास वीर निर्वाण के 584 वर्ष बाद हुआ और तभी से दसपूर्त का विच्छेद हो गया। दिगम्बर परम्परा यह स्वीकार करती है कि अन्तिम दसपूर्वो के ज्ञाता धरसेन हुए हैं तथा वीर निर्वाण के 245 वर्ष बाद उनका विच्छेद हो गया। स्पष्ट है कि दिगम्बर परम्परा में चतुर्दशपूर्वधर व दशपूर्वधर दोनों का ही विच्छेदक्रम श्वेताम्बर परम्परा से पहले ही स्वीकार किया गया है। आगम वाचनाएँ ___भगवान् महावीर ने अर्थरूप में जो उपदेश दिये, गणधरों ने उन्हें सूत्ररूप में गूंथा और इस तरह जैन वाङ्मय की परम्परा का प्रारंभ हुआ। यह ज्ञानराशि मौखिक रूप से गुरु परम्परा से शिष्यों को प्राप्त होती रही लेकिन धीरे-धीरे समय, काल व परिस्थितियों के अनुसार इन्हें याद करना कठिन हो गया और आगमों का विच्छेदक्रम प्रारंभ हो गया। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए समय-समय पर श्रमणों तीर्थंकर व आगम-परम्परा
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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