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________________ द्वारा विभिन्न सम्मेलन बुलाये गये तथा उन्हें लिखित रूप प्रदान किया गया। आज जो आगम ग्रंथ हमें उपलब्ध हैं, वे इन्हीं वाचनाओं का परिणाम हैं। प्रथम वाचना- वीर निर्वाण के 160 वर्षों बाद पाटलिपुत्र में द्वादशवर्षीय भीषण दुष्काल पड़ा जिसके कारण श्रमण संघ छिन्न-भिन्न हो गया। बहुश्रुतधर अनेक श्रमण काल को प्राप्त हो गये। ऐसी स्थिति में जैन संघ को अपने साहित्य की चिन्ता हुई और अकाल की समाप्ति के पश्चात् श्रमणसंघ स्थूलभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में एकत्रित हुआ। वहां पर स्मृति द्वारा एकादश अंगों को व्यवस्थित किया गया। बारहवां अंग दृष्टिवाद किसी को भी स्मरण नहीं था अतः उसका संग्रह नहीं किया जा सका। बाद में भद्रबाहु द्वारा स्थूलभद्र को दसपूर्वो की अर्थ सहित तथा शेष चार पूर्वो की शब्दरूप वाचना दी गई। द्वितीय वाचना- आगम संकलन का दूसरा प्रयास ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी अर्थात् वीर निर्वाण के 300-330 वर्ष के मध्य राजा खारवेल के समय में हुआ।सम्राट खारवेल जैन-धर्म के परम् उपासक थे। उनके हाथीगुम्फा' अभिलेख से स्पष्ट है कि उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनियों का एक संघ बुलाया और मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उनका पुनः उद्धार करवाया। 'हिमवंत थेरावली' नामक प्राकृत-संस्कृत मिश्रित पट्टावली में भी स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख है कि महाराज खारवेल ने प्रवचन का उद्धार करवाया था। तृतीय वाचना- आगमों को संकलित करने की तीसरी वाचना वीरनिर्वाण के 827-840 वर्ष बाद अर्थात् तीसरी शताब्दी में स्कन्दिल के नेतृत्व में मथुरा में हुई। यह सम्मेलन मथुरा में होने के कारण माथुरीवाचना के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस समय भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा, जिसके कारण श्रुत तथा श्रुतवेत्ता दोनों ही नष्ट हो गये। दुर्भिक्ष की समाप्ति पर युग-प्रधान आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम वेत्ता मुनि इकट्ठे हुए, जिन्हें जैसा स्मरण था उस आधार पर श्रुत संकलन किया गया। उस समय आचार्य स्कन्दिल ही एक मात्र अनुयोगधर थे। उन्होंने उपस्थित श्रमणों को अनुयोग की वाचना दी। इस दृष्टि से सम्पूर्ण अनुयोग स्कन्दिल सम्बन्धी माना गया, और यह वाचना स्कन्दिल वाचना के नाम से जानी गई। ____ चतुर्थ वाचना- माथुरीवाचना के समय के आस-पास ही वल्लभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में दक्षिण-पश्चिम में विचरण करने वाले श्रमणों की एक वाचना हुई, जिसका उद्देश्य विस्मृत श्रुत को व्यवस्थित करना था। उपस्थित 10 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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