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________________ भगवतीसूत्र में बंध के दो भेद किये गये हैं 1. ऐर्यापथिक बंध, 2. साम्परायिकबंध ऐर्यापथिक बंध- के वल योगों के निमित्त से होने वाले सातावेदनीयरूपकर्मबंध को ऐर्यापथिक बंध कहते हैं। जैन परम्परा में योग का अर्थ है मन, वचन व काय की प्रवृत्ति । योग एक प्रकार का स्पन्दन है, जो आत्मा व पुद्गल वर्गणाओं के संयोग से होता है। भगवतीसूत्र में योग के तीन प्रमुख भेद किये गये हैं- 1. मनयोग, 2. वचनयोग, 3. काययोग इनके अवान्तर पन्द्रह भेदों का भी ग्रंथ में उल्लेख हुआ है3 1. सत्य-मनोयोग, 2.मृषा-मनोयोग, 3. सत्यमृषा-मनोयोग, 4. असत्यमृषामनोयोग, 5. सत्यवचन-योग, 6. मृषा वचनयोग, 7. सत्यमृषा-वचनयोग, 8. असत्यमृषा-मनोयोग, 9. औदारिकशरीर-काययोग, 10. औदारिकमिश्रशरीरकाययोग, 11. वैक्रियशरीर-काययोग, 12. वैक्रियमिश्र-शरीरकाययोग, 13. आहारकशरीर-काययोग, 14. आहारकमिश्रशरीर-काययोग, 15. कार्मणशरीरकाययोग __योग को कर्मबंध का कारण मानते हुए भगवतीसूत्र में कहा गया है कि मनयोग, वचनयोग व काययोग तीनों से कर्म का उपचय होता है। एकेन्द्रिय स्थावर जीवों में सिर्फ काययोग से, विकलेन्द्रिय जीवों में वचनयोग व काययोग से तथा पंचेन्द्रिय जीवों में तीनों योग से कर्म उपचय होता है।4 साम्परायिक बंध- कषायों के निमित्त से होने वाले चतुर्गतिक संसार भ्रमणरूप कर्मबंध को साम्परायिक कर्मबंध कहते हैं। कषाय युक्त होने वाला बंध अधिक शक्तिशाली होता है। जबकि ऐर्यापथिक बंध निर्बल व अल्पायु वाला होता है तथा कषाय शांत होने की अवस्था से पहले नहीं बंधता है। इस दृष्टि से ग्रंथ में उसे सादि कहा गया है तथा अयोगी अवस्था में इसका बंधन नहीं होता है, इस दृष्टि से इसे सांत कहा गया है। ___ वास्तव में देखा जाय तो कर्मबंध का प्रमुख कारण कषाय ही है। भगवतीसूत्र में कहा गया है कि कषाय साधनों से युक्त सामायिकधारी श्रमणोपासक को साम्परायिक क्रिया लगती है। साम्परायिक बंध व ऐर्यापथिक बंध की चर्चा में भी ग्रंथ में कहा गया है कि जिस जीव के क्रोध, मान, माया व लोभ व्युच्छिन्न हो गये, उनको ऐर्यापथिक क्रिया लगती है, किन्तु जिनके ये चारों कषाय व्युच्छिन्न नहीं हुए हैं, उनको साम्परायिक क्रिया लगती है। उपयोगरहित (प्रमादयुक्त) गमन आदि करने वाले अनगार को सूत्र कर्म सिद्धान्त 283
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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