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________________ एकान्त रूप से निर्जरा करता है, उसके पाप-कर्म नहीं लगते हैं। तथारूप श्रमण को अप्रासुक व अनेषणीय आहार देने पर श्रमणोपासक के बहुत निर्जरा होती है तथा अल्पतर पाप-कर्म होता है। किन्तु असयंत, अविरत, पापकर्मों का जिसने निरोध नहीं किया उसे प्रासुक या अप्रासुक, एषणीय या अनेषणीय अशन-पानादि देने वाले श्रमणोपासक के एकान्त पापकर्म होता है, किसी प्रकार की निर्जरा नहीं होती है। संलेखना __ कुछ जैन ग्रंथों में संलेखना को भी श्रावक व्रतों में स्थान दिया गया है। वसुनन्दिश्रावकाचार2 में इसे चौथा शिक्षाव्रत माना है। वहाँ कहा गया है कि वस्त्रमात्र परिग्रह को रखकर अवशिष्ट समस्त परिग्रह को छोड़कर पान के सिवाय तीन प्रकार के आहार का त्याग करना संलेखना है। तत्त्वार्थसूत्र में मरणकाल के उपस्थित होने पर प्रीतिपूर्वक नियम को संलेखना कहा है। अमितगति श्रावकाचार4 में कहा है कि अपने दुर्निवर अति भयंकर मरण का आगमन जानकर तत्त्वज्ञानी धीर-वीर श्रावक अपने बांधवों को पूछकर संलेखना करे। भगवतीसूत्र में ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक द्वारा मासिक संलेखना कर साठभक्त के अनशन द्वारा छेदन कर समाधि प्राप्त करने का उल्लेख हुआ है। प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान का अर्थ है प्रवृत्तियों को सीमित या मर्यादित करना। आचार्य अभयदेवसूरि ने स्थानांग टीका में लिखा है कि अप्रमत्तभाव को जगाने के लिए जो मर्यादापूर्वक संकल्प किया जाता है, वह प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यानव्रत का श्रमणाचार व श्रावकाचार दोनों में ही समावेश होता है। जैन परंपरा में यह माना गया है कि श्रमण हो या श्रावक वह जब तक असद् आचरण से मुक्त होने की प्रतिज्ञा (प्रत्याख्यान) नहीं करता है वह उस असद् प्रवृत्ति से मुक्त नहीं होता है क्योंकि यद्यपि वह उस असद् आचरण को करता नहीं पर परिस्थितिवश वह उस असद् आचरण को अपना सकता है। __जीवन में प्रत्याख्यान का बड़ा महत्त्व है। प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा त्याग करने से व्यक्ति में अनासक्ति की भावना उत्पन्न होती है व तृष्णा कम होती जाती है। प्रत्याख्यान के महत्त्व को बताते हुए उत्तराध्ययन में कहा गया है कि - पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरंभइ - (29.14) अर्थात् प्रत्याख्यान से कर्मों का आस्रव द्वार बंद हो जाता है। भगवतीसूत्र7 में कहा गया है कि प्रत्याख्यान का श्रावकाचार 271
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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