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फल संयम है और संयम का फल अनास्रवत्व है। प्रत्याख्यान से जीवन में कर्मबंध नहीं होता है। इसी कारण भगवतीसूत्र में पापकर्म का प्रतिघात व प्रत्याख्यान करने वाले को धर्म में स्थित तथा पापकर्म का प्रतिघात व प्रत्याख्यान नहीं करने वाले को अधर्म में स्थित कहा गया है। प्रत्याख्यान के कुछ निम्न प्रकारों का ग्रंथ में उल्लेख हुआ है। योग प्रत्याख्यान (मन, वचन व काय संबंधी प्रवृत्तियों को रोकना), शरीर प्रत्याख्यान (शरीर से ममत्व हटाना), कषाय प्रत्याख्यान (क्रोधादि चार कषायों को जीतना), संभोग प्रत्याख्यान (भोजन को मण्डलीबद्ध बैठकर खाने का त्याग), उपधि प्रत्याख्यान (वस्त्रादि उपकरणों का त्याग), भक्त प्रत्याख्यान (संलेखना संथारा करना) । प्रत्याख्यान के इन सभी प्रकारों का अन्तिम फल मोक्ष बताया गया है।
श्रावक के प्रत्याख्यान व्रत का विवेचन करते हुए भगवतीसूत्र में कहा गया है कि यदि किसी श्रावक ने पहले ही त्रसकाय व वनस्पतिकाय जीव की हिंसा का प्रत्याख्यान लिया है और पृथ्वी खोदते समय उससे असावधानीवश किसी त्रस या वनस्पतिकाय जीव की हत्या हो जाय तो दोष नहीं लगता है क्योंकि वह श्रावक उस हिंसा के लिए प्रवृत्त नहीं था। सामायिक आदि में बैठे हुए किसी श्रावक के भाण्ड, वस्त्र आदि का अपहरण हो जाय और सामायिक के बाद जब वह उन्हें ढूँढता है तो वह अपने ही सामान को ढूँढ रहा है। यद्यपि सामायिक की अवस्था में तो उसने उनका त्याग कर दिया, किन्तु उसका उनके प्रति ममत्व भाव का त्याग नहीं होने के कारण सामायिक आदि के पश्चात वह वस्त्रादि उसी के कहलाते हैं। श्रावक जीवन के लिए प्रत्याख्यान का कितना महत्त्व है, इसकी विवेचना करते हुए भगवतीसूत्र में रथमूसलसंग्राम में भाग लेने वाले वरुण नागनत्तुआ सैनिक का उदाहरण दिया गया है जो युद्ध में अपना अन्तिम समय निकट जानकर सर्वपापों का जीवन-पर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान लेने के कारण महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होता है। प्रत्याख्यान के भेद-प्रभेद
भगवतीसूत्र में प्रत्याख्यान के दो भेद किये गये हैं- 1. मूलगुणप्रत्याख्यान, 2. उत्तरगुणप्रत्याख्यान।
मूलगुणप्रत्याख्यान- मूलगुणप्रत्याख्यान जीवन पर्यन्त के लिए ग्रहण किये जाते हैं। मूलगुणप्रत्याख्यान के दो भेद हैं- 1. सर्वमूलगुण - प्रत्याख्यान, 2. देशमूलगुण - प्रत्याख्यान । सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान में श्रमणों के पाँच महाव्रत आते हैं, इस दृष्टि से इसके पाँच प्रभेद किये गये हैं
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन