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________________ समझकर ग्रहण किया गया। इसके पश्चात् कुमार को स्नान करवाकर गोशीर्ष चन्दन आदि का लेप किया गया, बहुमूल्य आभूषणों व वस्त्रों से कुमार को सुसज्जित किया गया। तत्पश्चात् जमालिकुमार हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली शिविका (पालकी) में माता, धाय माता के साथ बैठे। उनके पीछे-पीछे उनके पिता, चतुरंगिणी सेना एवं भटादिवर्ग चल रहे थे। अत्यंत ठाठ-बाठ, राजचिह्नों एवं सभी प्रकार के जनवर्ग के साथ अभिनन्दन व स्तवन किये जाते हुए कुमार द्वारा बहुशालक उद्यान के निकट पहुँचकर स्वयं ही अपने आभूषण, माला अलंकार आदि उतार दिये गये। तत्पश्चात् पंचमुष्ठि लोचकर श्रमण दीक्षा अंगीकार की। राजकुमार महाबल व राजा उदायन के दीक्षा-महोत्सव का भी इसी वैभव के साथ वर्णन हुआ है। सुदर्शन श्रेष्ठी, स्कन्दक परिव्राजक; ऋषभदत्त ब्राह्मण आदि की दीक्षा का वर्णन सामान्य है। देवानन्दा व जयन्ती के दीक्षा प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि स्त्री को दीक्षा देते समय भगवान् महावीर स्वयं उन्हें मुंडित न करके आर्या चन्दना को सौंप देते थे। वही उन्हें प्रवजित करती थीं। श्रमण जीवनचर्या श्रमण की जीवनचर्या अत्यन्त कठिन है तथा श्रमण जीवन के आचार का पालन करना भी दुर्लभ है। श्रमण निरन्तर इस चर्या व आचार का पालन कर ऊर्ध्वमुखी विकास करता हुआ, अपनी आत्मा को विभाव से हटाकर स्वभाव में रमण करता है और अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है। किन्तु, इस अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त करना इतना आसान कार्य नहीं है इसके लिए श्रमण अनगार को संयमी जीवन में एक क्रमबद्ध-चर्या का पालन करना होता है। जैनागम साहित्य में श्रमण की जीवन-चर्या के बारे में विस्तार से वर्णन प्राप्त होते हैं। भगवतीसूत्र में स्कन्दक परिव्राजक के प्रकरण में श्रमण जीवनचर्या का जीवन्त चित्र प्रस्तुत हुआ है। इससे संयमी जीवन का सूक्ष्म व क्रमबद्ध वर्णन हमारे समक्ष उपस्थित हो जाता है। द्रष्टव्य है___'स्कन्दक परिव्राजक द्वारा अनुरोध करने पर भगवान् महावीर ने उसे प्रवजित किया। उसे प्रतिलेखना आदि क्रियाएँ सिखाईं, सूत्र का पाठ पढ़ाया, ज्ञानादि आचार, गोचर, विनय, विनय का फल, चारित्र, पिण्ड-विशुद्ध आदि करण तथा संयम यात्रा के निर्वाहक आहारादि की मात्रा के ग्रहण रूप धर्म को समझाया। यतनापूर्वक चलने, खड़े रहने, बैठने, सोने, खाने, बोलने तथा प्राणी, जीवादि के प्रति सावधानीपूर्वक बर्ताव करने व प्रमाद न करने की शिक्षा दी। स्कन्दक मुनि श्रमणदीक्षा एवं चर्या 225
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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