SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीक्षा के लिए अनुमति श्रमण परम्परा में यह नियम रहा है कि प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए दीक्षार्थी को माता-पिता या उनके मौजूद न होने पर अन्य अभिभावक की अनुमति प्राप्त करनी आवश्यक होती है। यद्यपि वैराग्य की प्रबल भावना के कारण ही दीक्षार्थी साधना के पथ पर आगे बढ़ता है परन्तु अगर उसमें माता-पिता या अभिभावकों की अनुमति प्राप्त हो जाय तो उस मार्ग पर प्रसन्नता से बढ़ा जा सकता है। भगवान् महावीर ने स्वयं माता-पिता की अनुमति प्राप्त न होने के कारण तीस वर्ष गृहस्थाश्रम में बिताये। उनके दिवंगत होने के बाद ही दीक्षा ग्रहण की क्षत्रियकुमार जमालि भी अनेक तर्कों द्वारा संसार की असारता का निरूपण कर माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगता है - अम्म! ताओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगरियं पव्वइत्तए - (9.33.33)। महाबल कुमार भी वैराग्य उत्पन्न हो जाने पर माता-पिता से अनुमति मांगता है तथा माता-पिता की इच्छा से एक दिन के लिए राज्यश्री को धारण कर फिर श्रमण दीक्षा ग्रहण करता है। इसी प्रकार शिवराजर्षि द्वारा दिशाप्रोक्षकतापसदीक्षा ग्रहण करने से पूर्व स्वजन तथा मित्रजन से अनुमति प्राप्त की गई। भगवतीसूत्र में किसी भी ऐसे व्यक्ति का उदाहरण नहीं प्राप्त होता जिसमें दीक्षा ग्रहण करने से पूर्व माता-पिता की अनुमति न ली हो। हाँ कोई सन्यासी या ऐसा व्यक्ति जो अपना सर्वेसर्वा हो तो उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे स्कन्दक परिव्राजक स्वयं अकेले ही भगवान महावीर के समीप आकर श्रमण दीक्षा अंगीकार करते हैं। दीक्षा अभिनिष्क्रमण महोत्सव ___ भगवतीसूत्र के अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि साधक जब श्रमण दीक्षा धारण करना चाहता है तो वह चुपचाप अथवा नीरस वातावरण में दीक्षा नहीं लेता अपितु व्यवस्थित रूप से अभिनिष्क्रमण महोत्सव मनाया जाता है और हर्ष, उल्लास के वातावरण में श्रमणदीक्षा होती है। जमालि के वैभवशाली दीक्षा अभिनिष्क्रमण महोत्सव का यह वर्णन दृष्टव्य है___ 'सर्वप्रथम जमालि का 108 स्वर्णादि-कलशों से सर्वऋद्धि के साथ निष्क्रमणाभिषेक किया गया। रजोहरण व पात्र मंगवाये गये, नापित को बुलाया गया तथा निष्क्रमण के योग्य चार अंगुल अग्रकेश को छोड़कर शेष केश काटे गये। जमालि की माता द्वारा उन अग्रकेशों को कुमार के अन्तिम दर्शन रूप 224 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy