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का तथा कालोदयी द्वारा श्रमणधर्म अंगीकार करने का विवेचन हुआ है। ग्रंथ में अन्यतीर्थिक मान्यताओं में से कुछ दृष्टव्य हैं
1. अन्यतीर्थिक इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो आयुष्य करता है - इस भव का आयुष्य व परभव का आयुष्य (1.9.20) I 2. दो परमाणु पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते । दो परमाणु पुद्गलों में स्निग्धता नहीं होती इसलिए दो परमाणु पुद्गल एक साथ नहीं चिपकते - (1.10.2)। दूसरे लोग ऐसा कहते हैं कि संग्राम में आहत, घायल या मृत्यु प्राप्त व्यक्ति मरकर देवलोक में जाते हैं - (7.9.20)
3.
भगवान् महावीर द्वारा युक्तिपूर्वक इन मान्यताओं का खण्डन कर स्वमत को प्रतिष्ठित किया गया है।
अन्य समवसरण
मत या दर्शन को समवसरण कहा जाता है । भगवान् महावीर के समय में अनेक दार्शनिक अपने-अपने मत का प्रचार-प्रसार कर रहे थे । ग्रंथ में चार समवसरणों का विशेष उल्लेख हुआ है ।12 इनका विशिष्ट विवेचन मधुकर मुनि ने व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के तीसवें शतक में किया है।
1. क्रियावादी, 2. अक्रियावादी,
3. अज्ञानवादी, 4. विनयवादी
क्रियावादी
क्रियावादी की विभिन्न परिभाषाएँ मिलती हैं । क्रिया कर्ता के बिना संभव नहीं है। अतः क्रिया के कर्ता अर्थात् आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करने वाले क्रियावादी हैं। क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं । ऐसी क्रिया प्राधान्य की मान्यता रखने वाले क्रियावादी हैं । जीव, अजीव आदि पदार्थों के अस्तित्व को मानने वाले भी क्रियावादी कहे जाते हैं । क्रियावादी के अवान्तर 180 भेद हैं ।
अक्रियावादी
अक्रियावादी की भी अनेक व्याख्याएँ मिलती हैं। पदार्थों को अनवस्थित मानकर उनमें क्रिया का अभाव मानने वाले अक्रियावादी हैं । क्रिया की क्या आवश्यकता, केवल चित्त की शुद्धि चाहिये, ऐसी मान्यता वाले अथवा जीवादि के अस्तित्व को नहीं मानने वाले अक्रियावादी हैं । अक्रियावादी के 84 अवान्तर भेद हैं। अज्ञानवादी
ज्ञानी व अज्ञानी का समान अपराध होने पर ज्ञानी का दोष अधिक माना जाता है, अज्ञानी का कम अतः अज्ञान ही श्रेयस्कर है । इस प्रकार की मान्यता वाले अज्ञानवादी कहलाते हैं । इनके 67 अवान्तर भेद हैं ।
महावीरेतर दार्शनिक परम्पराएँ
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