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________________ नहाकर पितरों के कार्य आदि सम्पन्न कर, कलश में डाभ डालकर वेदी बनाकर अग्नि जलाई। अग्नि के दाहिनी ओर ये सात वस्तुएँ रखी थी- 1. सकथा, 2. वल्कल, 3. स्थान, 4. शय्याभाण्ड, 5. कमण्डलु, 6. लकड़ी का डंडा, 7. अपना शरीर। फिर मधु, घी और चावलों का अग्नि में हवन किया और चरु (बलिपात्र) में बलिद्रव्य लेकर बलिवैश्यदेव (अग्निदेव) को अर्पण किया। अतिथि की पूजा करने के पश्चात् स्वयं आहार किया। इस प्रकार क्रम से एक-एक बेले के पारणे के दिन एक दिशा के प्रोक्षण की तापस-चर्या की।' दिशाप्रोक्षण तापसचर्या के फल का विवेचन करते हुए भगवतीसूत्र में कहा गया है- इस व्रत के फलस्वरूप शिवराजर्षि के तदावरणीय कर्मों के क्षयोपशम के कारण ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करते हुए विभंग ज्ञान उत्पन्न हुआ। इस विभंग ज्ञान से वे लोक में सात द्वीप व सात समुद्र देखने लगे। उससे आगे वे न जानते थे, न देखते थे। कान्दर्पिक39- जो साधु हंसोड़-हास्यशील हो। ऐसा साधु चारित्रवेश में रहते हुए भी हास्यशील होने के कारण अनेक प्रकार की विदूषक-की-सी चेष्टाएँ करता है। कन्दर्प अर्थात् काम संबंधी वार्तालाप करने वाला साधु भी कान्दर्पिक कहलाता है। आभियोगिक- विद्या और मंत्र आदि का या चूर्ण आदि के योग का प्रयोग करना और दूसरों को अपने वश में करना अभियोग कहलाता है। जो साधु व्यवहार से तो संयम का पालन करता है, किन्तु मंत्र, तंत्र, यंत्र, भूतिकर्म, प्रश्नाप्रश्न, निमित्त, चूर्ण आदि के प्रयोग द्वारा दूसरे को आकर्षित करता है, वशीभूत करता है, वह आभियोगिक कहलाता है। अन्यतीर्थिक प्रस्तुत ग्रंथ में कई स्थानों पर अन्यतीर्थिक की मान्यताओं का निरूपण, भगवान् महावीर द्वारा उनका खण्डन व स्वमत का निरूपण हुआ है। इन सभी उल्लेखों में किसी मत विशेष के नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। अन्यतीर्थिक से तात्पर्य सम्भवतः श्रमण निग्रंथ धर्म के विरोधी मत के प्रतिपादकों से रहा होगा। धर्म व दर्शन के संबंध में इनकी अपनी मान्यताएँ प्रचलित थीं, जो भगवान् महावीर के श्रमणधर्म के विपरीत थीं। ग्रंथ में कालोदायी, शैलोदाई, शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्नपालक, शैलपालक, शंखपालक व सुहस्ती गृहपति आदि अन्यतीर्थियों का उल्लेख हुआ है। गौतम गणधर के साथ उनके वार्तालाप 212 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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