SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेजोलेश्या प्राप्त कर ली। अब वह आजीविक संघ से परिवृत्त होकर आजीविक सिद्धान्तों से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरण करने लगा। किसी दिन उसके पास छः दिशाचर आये और उसके शिष्य बन गये। तब से गोशालक स्वयं को 'जिन' कहकर विचरने लगा। तब किसी दिन महावीर ने श्रावस्ती में लोगों की एक विशाल परिषद् में गोशालक की वास्तविकता प्रकट करते हुए उसे जिनप्रलापी कहा। महावीर के कथन से श्रावस्ती के लोगों में यह बात फैल गई कि गोशालक वास्तव में 'जिन' नहीं अपितु जिनप्रलापी है। उक्त घटना से क्रुद्ध होकर गोशालक ने महावीर के आनन्द नामक शिष्य को बुलाकर यह चेतावती दी- 'महावीर को समझाओ मेरे विरुद्ध प्रचार नहीं करे। यदि मेरे विषय में कुछ भी बोलेंगे तो मैं उन्हें भस्म कर दूंगा।' इधर गोशालक द्वारा तेजोलेश्या प्राप्ति की बात जानकर सुरक्षा की दृष्टि से भगवान् महावीर ने अपने श्रमणों को गोशालक के साथ धर्मचर्चा एवं प्रतिसारणा (धर्म मत के प्रतिकूल चर्चा) नहीं करने का आदेश दिया। तदनंतर किसी दिन गोशालक स्वयं भगवान् महावीर के समक्ष आया और अपनी पहचान को छिपाते हुए परिवृत्तपरिहार की मिथ्या मान्यतानुसार 133 वर्षों में अपने सात परिवृत्तपरिहार (शरीरान्तर प्रवेश) की प्ररूपणा करने लगा। भगवान् महावीर द्वारा प्रतिवाद करने पर गोशालक अनर्गल प्रलाप एवं भर्त्सना करने लगा। गोशालक का अनर्गल प्रलाप एवं अपने धर्माचार्य महावीर की भर्त्सना सुनकर उनका शिष्य सर्वानुभूति अनगार गोशालक को समझाने लगा। तब क्रुद्ध होकर गोशालक ने उस पर तेजोलेश्या छोड़ दी। सर्वानुभूति अनगार काल को प्राप्त हो गये। इसके पश्चात् सुनक्षत्र अनगार द्वारा प्रतिरोध करने पर गोशालक अत्यन्त क्रोधित हुआ और उसने उसे भी भस्म कर दिया। - इसके पश्चात् गोशालक ने भगवान महावीर पर तेजोलेश्या छोड़ी। किन्तु, वह तेजोलेश्या भगवान् महावीर पर अपना थोड़ा भी प्रभाव न दिखा सकी। भगवान् महावीर की प्रदक्षिणा कर वह तेजोलेश्या वापस लौटकर उसी मंखलीपुत्र गोशालक के शरीर में प्रवेश कर उसे जलाने लगी। क्रुद्ध होकर गोशालक ने छह माह के भीतर भगवान् महावीर की मृत्यु की भविष्यवाणी की। प्रतिवाद में भगवान् महावीर ने अपने दीर्घायुष्य तथा सात दिन के भीतर गोशालक की मृत्यु का कथन किया। अब गोशालक की तेजोलेश्या की शक्ति समाप्त हो चुकी थी। यह जानकर भगवान् महावीर के श्रमण निग्रंथ गोशालक के साथ अनेक धर्मचर्चाएँ कर युक्तियों 204 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy