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________________ तथा तर्कों से उसे निरुत्तर करने लगे। गोशालक की पराजय को देखकर उसके अनेक अनुयायी उसका साथ छोड़कर भगवान् महावीर के साथ मिल गये। किन्तु, कुछ अनुयायी अभी भी गोशालक के साथ ही थे। तेजोलेश्या के प्रभाव के कारण गोशालक तरह-तरह के प्रलाप, मद्यपान, नाच-गान आदि करने लगा। एक दिन अयंपुल नामक आजीविकोपासक गोशालक की उन्मत्त चेष्टाएँ देख विमुख होने लगा किन्तु, गोशालक के कुछ स्थविरों ने उसे ऊटपटांग समझाकर पुनः गोशालकमत में स्थिर किया। तदनंतर गोशालक ने अपना अन्तिम समय निकट जान कर अपने स्थविरों को निकट बुलाकर धूमधाम से शवयात्रा निकालने तथा तीर्थंकर होकर सिद्ध होने की उद्घोषणा सहित मरणोत्तर क्रिया करने का निर्देश दिया। किन्तु, जब सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी तभी गोशालक को सम्यक्त्व उपलब्ध हुआ। उसने स्वयं आत्मनिन्दापूर्वक अपने कुकृत्यों तथा उत्सूत्र-प्ररूपणा का रहस्योद्घाटन किया और मरण के अनन्तर अपने शव की अप्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तर क्रिया करने का निर्देश दिया। उसकी मृत्यु के उपरान्त स्थविरों ने बन्द कमरे में उसके आदेश का कल्पित रूप से औपचारिक पालन ही किया। फिर सत्कारपूर्वक गोशालक की मरणोत्तर क्रियाएँ सम्पन्न की। शतक के उपसंहार में गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने गोशालक के भावी जन्मों की झाँकी बतलाकर सभी योनियों और गतियों में अनेक बार भ्रमण करने के पश्चात् गोशालक के आराधक होकर महाविदेह क्षेत्र में दृढ़प्रतिज्ञ केवली होकर अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने के उज्जवल भविष्य का कथन किया है। ग्रंथ में वर्णित गोशालक के जीवन चरित में आजीविक मत के इतिहास व सिद्धान्त दोनों पर ही प्रकाश पड़ता है। भगवतीसूत्र में आये उल्लेखों से स्पष्ट होता है कि आजीविक सम्प्रदाय भगवान् महावीर के समय से पहले भी अस्तित्व में था। ग्रंथा० में स्वयं गोशालक द्वारा कहा गया है कि 'मैं कौण्डिन्यायन गोत्रीय उदायी हूँ। सात परिवृत-परिहार में संचार पश्चात् मंखलीपुत्र गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हुआ हूँ।' गोशालक द्वारा उल्लेखित सात परिवर्त्त-परिहार इस प्रकार हैं 1. एणेयक के शरीर में 22 वर्ष 2. मल्लरामक के शरीर में 21 वर्ष 3. मण्डिक के शरीर में 20 वर्ष 4. रौह के शरीर में 19 वर्ष 5. भारद्वाज के शरीर में 18 वर्ष 6. गौतम पुत्र अर्जुन के शरीर में 17 वर्ष महावीरेतर दार्शनिक परम्पराएँ 205
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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