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________________ 1 श्रमण उसके लिए बिछौना बिछाने लगते हैं । बिछाने का कार्य समाप्त न होने से पहले ही जमालि उनसे पूछते हैं कि क्या बिछौना बिछ गया? तब श्रमण कहते हैं- बिछा नहीं, बिछाया जा रहा है। इस पर जमालि को यह अध्यवसाय उत्पन्न होता है कि ( महावीर के सिद्धांत) चलमान चलित है, उदीर्यमान उदीरित है, आदि मिथ्या हैं।' वह अपने शिष्यों को बुलाकर अपने नवीन सिद्धांत की प्ररूपणा करते हैं कि चलमान चलित नहीं, अचलित है आदि । I वस्तुत: जमालि अनगार द्वारा महावीर के सिद्धांत के प्रति एकान्त दृष्टि अपनाने के कारण उनका सिद्धान्त मिथ्या बताया गया है । विशेषावश्यकभाष्य' में भी श्रावस्ती में प्रादुर्भूत 'बहुरत' नामक निह्नवदर्शन के प्रवर्तक जमालि का वर्णन है। उसका मन्तव्य था- 'जो कार्य किया जा रहा है उसे सम्पूर्ण न होने तक ‘किया गया' ऐसा कहना मिथ्या है।' भगवतीसूत्र में जमालि की इस मिथ्या एकांत दृष्टि के कारण उसके लिए दर्शनभ्रष्टवेषधारी शब्द का प्रयोग हुआ है । दर्शनभ्रष्टसलिंगी को स्पष्ट करते हुए भगवतीवृत्ति' में कहा गया है कि 'साधु के वेष में होते हुए भी दर्शन भ्रष्टनिह्नव दर्शनभ्रष्टस्ववेषधारी है। ऐसा साधक आगम के अनुसार क्रिया करता हुआ भी निह्नव होता है, जिनदर्शन के विरुद्ध प्ररूपणा करता है, जैसे जमालि ।' आजीविक मत भगवतीवृत्ति' में आचार्य अभयदेवसूरि ने 'आजीविक' शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि एक खास प्रकार के पाखण्डी नग्न रहने वाले गोशालक के शिष्य, लब्धिप्रयोग करके अविवेकी लोगों द्वारा ख्याति प्राप्त करने वाले या महिमापूजा के लिए तप और चारित्र का अनुष्ठान करने वाले अविवेकी लोगों में चमत्कार दिखाकर अपनी आजीविका चलाने वाले ( आजीविक ) हैं । प्राचीन जैनागमों- स्थानांगसूत्र, औपपातिकसूत्र, उपासकदशांग आदि ग्रंथों में आजीविक मत के संबंध में यत्र-तत्र उल्लेख प्राप्त होते हैं । किन्तु, भगवतीसूत्र ऐसा ग्रंथ है, जिसमें आजीविक मत के आचार्य गोशालक का विस्तृत जीवन चरित वर्णित हुआ है। गोशालक का जीवन वृत्त गोशालक के पिता मंखली मंख जाति के थे । उस मंखली के भद्रा नाम की पत्नी थी। मंखली चित्रफलक हाथ में लेकर मंखवृत्ति से जीविकायापन हेतु ग्रामानुग्राम विचरण करता था। एक बार वह शरवण नामक सन्निवेश में गोबहुल भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन 202
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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