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________________ नियत होते हैं। प्रदेश दृष्टि से वस्तु की अनेकता को भी स्पष्ट किया जा सकता है, इसका उदाहरण हमें प्रज्ञापनासूत्र में मिलता है, जहाँ द्रव्य दृष्टि से धर्मास्तिकाय को एक बताया है तथा प्रदेशार्थिक दृष्टि से असंख्यातगुण बताया है। 1 भगवतीसूत्र” में धर्मास्तिकायादि छः द्रव्यों के अल्प - बहुत्व, तुल्य- अतुल्य का भी उल्लेख हुआ है, किन्तु इसका विस्तृत रूप से विवेचन न करते हुए प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्य पद के अनुसार समझने के लिए कहा गया है। प्रज्ञापनासूत्र 78 में इसका विवेचन इस प्रकार मिलता है- जो द्रव्य द्रव्यदृष्टि से तुल्य होते हैं, वे ही प्रदेशार्थिक दृष्टि से अतुल्य हो जाते हैं । जैसे धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्यदृष्टि से एक-एक होने के कारण तुल्य हैं, किन्तु असंख्यात प्रदेशी होने के कारण धर्म-अधर्म आपस में तो तुल्य हैं, किन्तु आकाश अनन्त प्रदेशी है अतः आकाश अतुल्य है । इसी प्रकार जीवादि अन्य द्रव्यों में भी द्रव्य व प्रदेश दृष्टियों के माध्यम से तुल्यता- अतुल्यता दोनों का समावेश हो जाता है । ओघादेश - विधानादेश वस्तु की संख्या तथा भेद - अभेद पर विचार करने के लिए ओघादेश व विधानादेश इन दो दृष्टियों का भी प्रयोग मिलता है। जैन परंपरा में तिर्यग्सामान्य और उसके विशेषों को व्यक्त करने के लिए क्रमशः ओघ व विधान शब्द प्रयुक्त हुए हैं। अतः वस्तु स्वभाव का वर्णन इन दो दृष्टियों के प्रयोग द्वारा भी किया जा सकता है। कृतयुग्मादि संख्या के विचार में ओघादेश व विधानादेश दृष्टियों का प्रयोग हुआ है। एक उदाहरण दृष्टव्य है; जीवां णं भंते! दव्वट्टयाए किं कडजुम्मे० पुच्छा । गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर०, नो कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो 'दावरजुम्मा, कलियोगा - (25.4.31) भगवन्! (अनेक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न | गौतम! वे ओघादेश से ( सामान्यतः ) कृतयुग्म हैं, किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म या कल्योजरूप नहीं हैं। विधानादेश (प्रत्येक की अपेक्षा) से वे कृतयुग्म, त्र्योज तथा द्वापरयुग्म नहीं हैं, किन्तु कल्योजरूप हैं । व्यावहारिक व नैश्चयिक नय वस्तु के मूल एवं पर-निरपेक्ष स्वरूप को बतलाता है वह निश्चयनय है और जो नय वस्तु के पराश्रित स्वरूप को बताता है वह व्यवहार नय है । अर्थात् अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद 195
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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