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________________ रहने वाले उपयोग की दृष्टि से मैं अनेक हूँ।' प्रज्ञापनासूत्र में इसी प्रकार द्रव्य में एकता व अनेकता का प्रतिपादन किया गया है। धर्मास्तिकाय द्रव्यदृष्टि से एकद्रव्य है इसलिए सर्वस्तोक है। प्रदेश की दृष्टि से असंख्यातगुण भी है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, आकाश आदि को द्रव्यदृष्टि से एक तथा प्रदेशदृष्टि से अनेक माना है। जीव व शरीर का भेदाभेद जीव व शरीर के संबंध के प्रश्नों का उत्तर भी ग्रंथ में अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर ही दिया है। यथा- यह शरीर आत्मा भी है और आत्मा से भिन्न अन्य (पुद्गल) भी है। शरीर रूपी भी है और अरूपी भी है। शरीर सचित्त भी है और अचित्त भी है। भगवतीसूत्र के उक्त कथन में शरीर को आत्मा से अभिन्न मानने के कारण ही उसे अरूपी व चेतन माना है तथा आत्मा से भिन्न मानने के कारण उसे रूपी व अचेतन रूप में भी स्वीकार किया है। द्रव्य व पर्याय का भेद-अभेद द्रव्य व पर्याय एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं या सर्वथा अभिन्न? इस प्रश्न पर भी भगवतीसूत्र में विचार किया गया है। पार्श्व के अनुयायियों तथा भगवान् महावीर के शिष्यों के बीच हुए विवाद में कहा गया है- 'आत्मा ही सामायिक है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ है। आत्मा द्रव्य है तथा सामायिक उसकी पर्याय है, किन्तु यहाँ द्रव्य दृष्टि को प्रधानता देते हुए द्रव्य व पर्याय में अभिन्नता को स्थापित किया गया है। इसी प्रकार ज्ञान व आत्मा तथा दर्शन व आत्मा की अभिन्नता को स्वीकार करके द्रव्य व पर्याय के अभेदवाद का समर्थन किया गया है। किन्तु, द्रव्य व पर्याय को ग्रंथ में सर्वथा अभिन्न रूप नहीं माना गया है। एकान्त अभेद मान लेने से तो पर्याय के नष्ट हो जाने पर द्रव्य भी नष्ट हो जायेगा। अतः भगवतीसूत्र में कहा गया है कि अस्थिर पर्याय के नष्ट होने पर भी द्रव्य स्थिर रहता है। पुनः ग्रंथ31 में जहाँ पर्याय दृष्टि से आत्मा के आठ भेद किये हैं वहाँ द्रव्यात्मा को छोड़कर शेष सभी भेद पर्यायदृष्टि से किये गये हैं। अस्ति-नास्ति का अनेकान्त कुछ दर्शन सर्व अस्ति व कुछ सर्व नास्ति के सिद्धान्त को मानते हैं। भगवान् महावीर ने सर्व अस्ति व सर्व नास्ति इन दोनों सिद्धान्तों की परीक्षा करते हुए भगवतीसूत्र में कहा गया है- हम अस्ति को नास्ति नहीं कहते हैं, नास्ति को अस्ति नहीं कहते हैं, हम जो अस्ति है, उसे अस्ति कहते हैं, जो अनेकान्तवाद, स्यावाद एवं नयवाद 181
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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