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रहती हैं। एक पर्याय को छोड़कर वह दूसरी, तीसरी पर्याय को ग्रहण करता रहता है। इसीलिये पर्याय दृष्टि से वह अनित्य व अशाश्वत है। इसी बात को नारक जीव के उदाहरण द्वारा अधिक स्पष्ट किया गया है। अव्युच्छित्तिनय की अपेक्षा से नारक शाश्वत है तथा व्युच्छित्तिनय की अपेक्षा से अशाश्वत है।7 अर्थात् जिस प्रकार जीवद्रव्य की अपेक्षा से जीव शाश्वत है उसी प्रकार नारक को भी जीव द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत कहा है तथा नारकादि पर्याय की दृष्टि से नारक को अशाश्वत कहा है क्योंकि पर्यायें सभी जीवों की बदलती रहती हैं।
भगवतीसूत्र के नवें शतक में जमालि के साथ हुए प्रश्नोत्तर में जीव की नित्यता-अनित्यता को स्पष्ट किया गया है। यथा- जीव शाश्वत है, क्योंकि तीनों कालों में ऐसा कोई समय नहीं जब जीव नहीं हो। अतः वह नित्य, ध्रुव, अक्षय........शाश्वत है। जीव अशाश्वत भी है क्योंकि वह नैरयिक होकर तिर्यंचयोनिक होकर, मनुष्य हो जाता है और मनुष्य होकर कदाचित् देव हो जाता है। इस प्रकार जीव विविध पर्यायों को प्राप्त करता है और इन विविध पर्यायों में भ्रमण करते हुए भी उसमें जीवत्व कभी भी लुप्त नहीं होता है, उसकी अवस्थाएँ लुप्त होती रहती हैं।18 मालवणियाजी के अनुसार इस व्याकरण में औपनिषद् ऋषिसम्मत आत्मा की नित्यता और भौतिकवादिसम्मत आत्मा की अनित्यता के समन्वय का सफल प्रयत्न है। अर्थात् भगवान् बुद्ध के अशाश्वतानुच्छेदवाद के स्थान में शाश्वतोच्छेदवाद् की स्पष्ट रूप से प्रतिष्ठा की गई है।" जीव की सान्तता व अनन्तता20
जीव द्रव्य एक स्वतंत्र द्रव्य है अतः अन्य द्रव्यों की भांति उसमें भी द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की दृष्टि से सान्तता व अनन्तता की प्ररूपणा हो सकती है। स्कन्दक परिव्राजक के प्रकरण में द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव इन चार दृष्टियों को ग्रहण कर कहा गया है- द्रव्य की अपेक्षा से जीव सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा से (एक जीव) असंख्यात प्रदेशवाला है अतः सान्त है। काल की अपेक्षा से तीनों कालों में वर्तमान होने के कारण अनन्त है तथा भाव की दृष्टि से अनन्त ज्ञानदर्शन-चारित्र व अनन्त अगुरुलघुपर्याय रूप होने के कारण अनन्त है। वस्तुतः द्रव्य व क्षेत्र की दृष्टि से जीव सीमित है अतः उसे सान्त कहा गया है। काल व भाव की दृष्टि से जीव असीमित है अतः उसे अनन्त कहा गया है। मालवणियाजी के अनुसार यह कह करके भगवान् महावीर ने आत्मा के 'अणोरणीयान् महतो महीयान्' इस औपनिषद् मत का निराकरण किया है।
अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद
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