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डॉ. मोहनलाल मेहता' ने लिखा है- 'इस (स्वप्न) वर्णन को पढ़ने से यह मालूम होता है कि शास्त्रकार ने कितने सुन्दर ढंग से एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। चित्र-विचित्र पंखवाला पुंस्कोकिल कौन है? यह स्याद्वाद का प्रतीक है। जैन दर्शन के प्राणभूत सिद्धान्त स्याद्वाद का कैसा सुन्दर चित्रण है । वह एक वर्ण के पंख वाला कोकिल नहीं है अपितु चित्र-विचित्र पंख वाला कोकिल है । जहाँ एक तरह के पंख होते हैं, वहां एकान्तवाद होता है, स्याद्वाद या अनेकान्तवाद नहीं। जहाँ विविध वर्ण के पंख होते हैं, वहाँ अनेकान्तवाद या स्याद्वाद होता है, एकान्तवाद नहीं । एक वर्णवाले व चित्र-विचित्र पंखवाले कोकिल में यही अन्तर है । '
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर को अनेकान्त के उपदेशक के रूप में स्वीकार किया है और इस बात की सिद्धि ग्रंथ में आये कई उदाहरणों से होती है, जहाँ भगवान् महावीर ने अपनी अनेकान्त दृष्टि का प्रयोग कर गौतम गणधर, जयन्ती श्राविका, सोमिल ब्राह्मण आदि के प्रश्नों के उत्तर दिये हैं । यथा दृष्टव्य है
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गौतम - कोई यदि ऐसा कहे कि मैं सर्वप्राण, सर्वभूत, सर्वजीव, सर्वसत्त्व की हिंसा का प्रत्याख्यान करता हूँ तो क्या उसका वह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है या दुष्प्रत्याख्यान ?
भगवान् महावीर- स्यात् सुप्रत्याख्यान है और स्यात् दुष्प्रत्याख्यान है । गौतम - भंते! इसका क्या कारण ?
भगवान् महावीर - जिसको यह भान नहीं कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये त्रस हैं और ये स्थावर, उसका वैसा प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है । वह मृषावादी है। किन्तु, जो यह जानता है कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये त्रस हैं और ये स्थावर, उसका वैसा प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है, वह सत्यवादी है ।
इसी प्रकार ग्रंथ में भगवान् महावीर ने जयंति श्राविका के प्रकरण' में तत्त्वविद्या से संबंधित प्रश्नों का अनेकान्त पद्धति से समाधान किया है । बाद के जैन आचार्यों ने इसे विकसित कर नया रूप प्रदान किया। जैनाचार्यों की दृष्टि में अनेकान्तवाद
भगवान् महावीर द्वारा प्रदान की गई अनेकान्त दृष्टि की बाद के आचार्यों ने अपने ढंग से व्याख्या कर उसे परिभाषित करने का प्रयत्न किया । आचार्य सिद्धसेन 10 ने अनेकान्त की व्याख्या करते हुए कहा है कि किसी भी वस्तु को अनेक
अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद
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