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________________ 4. 5. नियमसार, शुद्धोपयोगाधिकार, 159 जैन न्याय का विकास, पृ. 1 6. स्थानांगवृत्ति, अभयदेव, 2.1 -- - - 7. अनुयोगद्वार, मुनि मधुकर, 1 विवेचन, पृ. 4 8. आवश्यकनियुक्ति, 1073 जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भाग-2, पृ. 257 व्या. सू., 16.7.1 11. उत्तराध्ययन, अध्ययन 23 आगमयुग का जैन दर्शन, पृ. 129 13. वही, पृ. 129-135 14. व्या. सू., 8.2.22-23 15. स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 2.1.86-106, पृ. 36-37 16. राजप्रश्रीयसूत्र, मुनि मधुकर, 241, पृ. 161 17. 'ऋजुविपुलमती मनःपर्यायः' - तत्त्वार्थसूत्र, 1.24 18. व्या. सू., 6.10.14 19. वही, 8.2.24 20. वही, 16.7.1 21. व्या. सू. 12.10, 16 22. जं समयं पासइ नो तं समयं जाणइ- वही 18.8.21 23. सव्वस्स केवलिस्स जुगवं दो नत्थि उवओगा- आवश्यकनियुक्ति, गा. 979 24. (क) द्रव्यसंग्रह, 44 (ख) गोम्मटसार(जीवकाण्ड) 730 (ग) नियमसार, गा. 160 25. चोक्तं 'सकलादेशः प्रमाणाधीनो - सर्वार्थसिद्धि, 1.6.24 तत्त्वार्थसूत्र, 1.9-10 27. अष्टशती, पृ. 175 28. तत्त्वार्थोकवार्तिक, 1.10.77 पृ. 174 29. प्रमाणं स्वपरभासिज्ञानं बाधविवर्जितम - न्यायावतार, 1 30. सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम् - प्रमाणमीमांसा, 1.1.2, पृ. 2 31. जैनदर्शन स्वरूप और विश्रेषण, पृ. 385 32. आगमयुग का जैनदर्शन, पृ. 135-136 सूत्रकृतांगवृत्ति,7 34. स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 4.1.125, पृ. 240 35. 'अहवा हेऊ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे अणुमाणे ओवम्मे आगमे' स्थानांग, 43.504 36. अनुयोगद्वार, प्रमाणाधिकार 172 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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