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1. किंचितसाधोपनीत- जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है, जैसा कुमुद है वैसा चन्द्र है।
2. प्राय:साधोपनीत- जैसा गौ है वैसा गवय है, जैसा गवय है वैसा गौ है।
3. सर्वसाधोपनीत- अरिहंत ने अरिहंत जैसा ही किया। वैधोपनीत
इसके भी तीन भेद हैं;
1. किंचितवैधोपनीत- जैसा शाबलेय है वैसा बाहुलेय नहीं। जैसा बाहुलेय है वैसा शाबलेय नहीं है।
2. प्राय:वैधोपनीत- जैसा वायस है वैसा पायस नहीं है। जैसा पायस है वैसा वायस नहीं है।
3. सर्ववैधोपनीत- दास ने दास जैसा नहीं किया। आगम निरूपण
आगम के दो भेद किये गये हैं; 1. लौकिक आगम, 2. लोकोत्तर आगम
लौकिक आगम- जिसे अज्ञानी, मिथ्यादृष्टिजनों ने अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचा हो, वह लौकिक आगम है। यथा रामायण, महाभारत आदि।
लोकोत्तर आगम- ज्ञान-दर्शनधारक, अतीत, वर्तमान और अनागत के ज्ञाता, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा सहर्ष वंदित, पूजित, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अरिहंत भगवन्तों द्वारा प्रणीत जैसे- आचारांग आदि बारह द्वादशांग, गणिपिटक, लोकोत्तरिक आगम हैं। एक अन्य दृष्टि से लोकोत्तर आगम के तीन भेद किये गये हैं1. सूत्रागम, 2. अर्थागम, 3. परम्परागम।
उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भगवतीसूत्र में ज्ञान व प्रमाण दोनों पर प्रचुर मात्रा में विवेचन हुआ है। संकलनकर्ता ने मूलग्रंथ में इसका वर्णन न करके नन्दीसूत्र व अनुयोगद्वारसूत्र से पूरा करने का निर्देश दिया है। इन दोनों सूत्रों के अध्ययन के पश्चात् यही कहा जा सकता है कि ज्ञान, प्रामाण्य-अप्रामाण्य के विषय में भगवतीसूत्र में अच्छी सामग्री है, जिसे बाद के आचार्यों ने तर्क के आधार पर विकसित किया है और जैन प्रमाणशास्त्र की नींव को सुदृढ़ किया। संदर्भ 1. व्या. सू., 12.10.1 2. 'ववहारेणुवदिस्सइ णाणिस्स चरित्तं-दसणं णाणं।
ण वि णाणं ण चरित्तं ण दंसणं जाणगो सुद्धो- समयसार, गा. 7 3. प्रवचनसार, 1.60
ज्ञान एवं प्रमाण विवेचन
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