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34. भगवतीवृत्ति, अभयदेव, पत्रांक 776 35. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (भाग-1) पृ. 219 36. पंचास्तिकाय, गा. 90 37. तत्त्वार्थसूत्र 5.1.3, 5, 6, 18 38. सर्वार्थसिद्धि, 5.18.561 पृ. 216 39. व्या. सू. 2.10.4 40. व्या. सू. 20.2.6 41. भगवतीवृत्ति, अभयदेव, पत्रांक 776
व्या. सू. 2.10.11-12
द्रव्यसंग्रह, गा. 20 44. व्या. सू. 13.4.26 45. उत्तराध्ययन, 28.9 46. राजवार्तिक, 5.12.2-6 पृ. 454-455 47. 'दिश्यते व्यपदिश्यते पूर्वादितया स्तवनयेति दिक'- स्था. वृत्ति
आचारांग, मुनि मधुकर, 1.1.1 49. स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 6.37, 10.31 50. 'जीव चेव अजीव चेव' - व्या. सू. 10.1.3-5 51. भगवतीवृत्ति, अभयदेव, पत्रांक 493 52. व्या. सू. 10.1.6,7 53. 'इन्दो देवता यस्याः सैन्द्री.............भगवतीवृत्ति, अभयदेव, पत्रांक 493 54. व्या. सू. 13.4.16-22
व्या. सू. (भाग-4), प्रस्तावना, पृ. 63 56. प्रज्ञापनासूत्र, 1.5 57. स्थानांगसूत्र, मुनि मधुकर विवेचन, 2.4.387-389, पृ. 81
व्या. सू. 25.4.17 वही, 13.4.48-49 वही, 25.2.1-2, 10.1.8, 2.10.11 'कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो। दोण्हं एस सहावो कालो खणभंगुरो णियदो।। पंचास्तिकाय, गा. 100
प्रवचनसार, ज्ञेयतत्त्वाधिकार, गा. 36.43, 44 63. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.39.1-2 पृ. 501 64. दर्शन और चिन्तन, पृ. 331-332
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (भाग-4), प्रस्तावना, पृ. 64 66. A Brief History of time, P. 15-37 67. वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य' तत्त्वार्थसूत्र, 5.22
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अरूपी-अजीवद्रव्य
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