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________________ प्रमाणकाल- जिससे रात्रि, दिवस, वर्ष, शतवर्ष आदि का प्रमाण जाना जाये, उसे प्रमाण काल कहते हैं। प्रमाणकाल दो प्रकार का है, दिवसप्रमाणकाल व रात्रिप्रमाणकाल। यथायुर्निर्वृत्तिकाल- चारों गतियों में भ्रमण करने वाले नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य या देव में से जो जैसी आयुष्य बांधता है उस आयुष्य का पालन करना या भोगना यथायुर्निर्वृत्तिकाल कहलाता है। मरणकाल- जीव का शरीर से या शरीर का जीव से पृथक होना मरणकाल कहलाता है। मरणशब्द काल का पर्यायवाची है, अतः मरण ही काल है। अद्धाकाल- समय, आवलिका आदि काल अद्धाकाल कहलाता है। भगवतीसूत्र में अद्धाकाल अनेक प्रकार का बताया गया है। वह समयरूप प्रयोजन के लिए है, आवलिका रूप प्रयोजन से लेकर उत्सर्पिणी रूप प्रयोजन के लिए है। गणनीयकाल- जिस काल की संख्या में गणना हो वह गणनीय काल है। दो भागों में जिसका छेदन-भेदन न हो सके वह समय है। असंख्य समयों के समुदाय की एक आवलिका, संख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास, संख्येय उच्छ्वास का एक नि:श्वास, स्वस्थ व्यक्ति का एक उच्छ्वास व एक निःश्वास मिलकर एक प्राण, सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोक का एक लव, 77 लवों का एक मुहूर्त, तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर, पंच संवत्सर का एक युग, बीस युग का एक वर्षशत, दसवर्षशत का एक वर्ष सहस्त्र, सौ वर्ष सहस्त्रों का एक वर्षशत सहस्त्र, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांगों का एक पूर्व, चौरासी लाख पूर्व का एक त्रुटितांग, चौरासी लाख त्रुटितांग का एक त्रुटित होता है। इस प्रकार पहले की राशि को 84 से गुणा करने से उत्तरोत्तर राशियाँ बनती हैं। यथा- अट्टांग, अट्ट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनुपूरांग, अर्थनुपूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका। यहाँ तक का काल गणित का विषय है। इसके बाद का काल औपमिक विषय है। औपमिककाल/4- जिसकी गणना न की जा सके वह काल औपमिक काल कहा जाता है। औपमिककाल दो प्रकार का बताया गया है- 1. पल्योपम 2. सागरोपम। नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्यों तथा देवों का आयुष्य पल्योपम व सागरोपम द्वारा मापा जाता है। इनके स्वरूप का विस्तृत विवेचन ग्रंथा5 में किया गया है। अरूपी-अजीवद्रव्य 153
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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