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को द्रव्य में सम्मिलित कर कालद्रव्य को मान्यता दे देते हैं अतः यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि काल-द्रव्य की सत्ता स्वतंत्र रूप से है, किन्तु उसे भिन्न-भिन्न ढंग से विवेचित करने का प्रयत्न किया है। ___ आधुनिक विज्ञान भी यह आवश्यक मानता है कि इस जगत में होने वाली घटनाओं को जानने के लिए उनका संबंध आकाश व समय से होना चाहिये। समय को छोड़कर हम किसी भी घटना को पूर्णरूप से नहीं जान सकते हैं। इस शताब्दी के आरंभ में प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन तथा उससे पूर्व न्यूटन ने आकाश व काल के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया है। 'प्रिंसिपिया' में काल की विवेचना करते हुए न्यूटन ने लिखा है कि 'निरपेक्ष, वास्तविक और गणितिक काल अपने आप और स्वभावतः किसी बाह्य वस्तु की अपेक्षा बिना सदा समान रूप से बहता है।' स्पष्ट है कि न्यूटन ने काल को स्वतंत्र वस्तु सापेक्ष वास्तविक तत्त्व माना है।
आइंस्टीन के आपेक्षिकता के सिद्धान्त के अनुसार आकाश की तीन विमितियाँ और काल की एक विमिति मिलकर एक चतुवैमितिक अखण्डता का निर्माण करती है और हमारे वास्तविक जगत में होने वाली सभी घटनाएँ इस चतुवैमितिक सतत्ता की विविध अवस्थाओं के रूप में सामने आती हैं।
___ वर्तमान समय में प्रसिद्ध लेखक स्टेफन हॉकिंग ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'ए ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम'66 में काल का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए काल के संबंध में कई प्रश्न उठाये हैं। यथा- हम अनागत काल को क्यों नहीं जानते? तथा जो भव बीत गये उसे हम क्यों नहीं जानते? इन प्रश्नों का उत्तर कुछ हद तक जैन दर्शन के संदर्भ में दिया जा सकता है। यथा जैन परंपरा में जातिस्मरणज्ञान पूर्वगत काल को जानना ही है। अर्थात् काल पीछे भी गति करता है। यह तभी संभव है जब काल स्वतंत्र-द्रव्य हो। इसी प्रकार भगवान् महावीर द्वारा ग्रंथ में कई जगह (अतिमुक्त कुमार, गोशालक आदि के प्रसंग में) आने वाले भवों का कथन किया गया है। यह अनागत काल को जानना ही तो है। इस संबंध में विशेष शोध की आवश्यकता है, जिससे जैन सम्मत कालद्रव्य को आधुनिक विज्ञान के समक्ष खड़ा किया जा सके। काल का स्वरूप व लक्षण
जो वस्तु मात्र के परिवर्तन में सहायक होता है, वह काल द्रव्य है, यद्यपि परिणमन की शक्ति सभी पदार्थों में वर्तमान होती है, किन्तु बाह्य निमित्त के अभाव
अरूपी-अजीवद्रव्य
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