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में कहा गया है - शरीरश्वांड्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् । सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च - ( 5.19-20 ) अर्थात् शरीर, वाणी, मन, निःश्वास व उच्छ्वास ये सभी पुद्गल के उपकार कार्य हैं तथा सुख-दुःख, जीवन व मरण ये भी पुद्गल के उपकार हैं ।
संदर्भ
1.
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6.
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10.
11.
12.
(क) स्थानांग, 2.1.1 (ख) प्रज्ञापना पद 1, टीका,
पंचास्तिकाय, 2.122, 124, 125
बृहत् द्रव्यसंग्रह, 15 की टीका, पृ. 39 सर्वार्थसिद्धि, 5.1.528, पृ. 202
17.
18.
19.
व्या. सू., 25.2.1-2, 2.10.11, 10.1.8
(क) व्या. सू., 7.10.9 (ख) तत्त्वार्थसूत्र, 5.4
'दव्वतो णं पोग्गलत्थिकाए अणंताइं दव्वाइं' व्या. सू. 2.10.6
वही, 13.4.28
उत्तराध्ययन, 28.12
प्रवचनसार, अधिकार - 2 गा. 40
स्पर्शरसगंधवर्णवान् पुद्गलः - जैन सिद्धान्त दीपिका, 1.11
'वावहारियनयस्स गोड्डे फाणियगुले नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे
पन्नते' - व्या. सू. 18.6.1
वही, 7.10.9
13.
14.
उत्तराध्ययन, 36.15
15. तत्त्वार्थसूत्र, 5.23, 24
16.
'पंचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा वण्णपरिणामे..
सू., 8.10.19
वही, 25.3.1, 7
वही, 25.4.87-95
'जे रूवी ते चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा खंधा खंधदेसा खंधपदेसा परमाणु पोग्गला'
वही, 2.10.11
20.
उत्तराध्ययन, 36.10
21. पंचास्तिकाय, गा. 74
22.
नियमसार, गा. 21-24
23.
व्या. सू. 20.2.8
24.
वही, 8.10.19
25.
वही, 8.1.3
26.
स्थानांग, मुनि मधुकर, 3.1.401, पृ. 165
...संठाणपरिणामे'- व्या.
रूपी - अजीवद्रव्य (पुद्गल)
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